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________________ श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/६२ तथा वज्र नाराच संहनन की मैं प्रकृति नाश करूँ। संहनन नामकर्म छह भेदों की सत्ता मैं नाश करूँ॥ नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल। निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥३६॥ ॐ ह्रीं वज्रनाराचसंहनननामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। प्रभु नाराच संहनन की भी प्रकृति प्रसिद्ध विनाश करूँ। संहनन नामकर्म छह भेदों की सत्ता मैं नाश करूँ॥ नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल । निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥३७॥ ॐ ह्रीं नाराचसंहनननामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। प्रकृति अर्द्ध नाराच संहनन का भी पूर्ण विनाश करूँ। संहनन नामकर्म छह भेदों की सत्ता मैं नाश करूँ॥ . नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल। निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥३८॥ ॐ ह्रींअर्द्धनाराचसंहनननामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तयेअर्ध्यनि./ अब कीलित संहनन प्रकृति का हे स्वामी मैं नाश करूँ। संहनन नामकर्म छह भेदों की सत्ता मैं नाश करूँ॥ नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल। निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥३९॥ ॐ ह्रीं कीलितसंहनननामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य नि.। असंप्राप्त सृपाटिका संहनन प्रकृति का मैं नाश करूँ। संहनन नामकर्म छह भेदों की सत्ता मैं नाश करूँ॥ नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल। निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल॥ -
SR No.007133
Book TitleSiddha Parmeshthi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherKundkund Pravachan Prasaran Samsthan
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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