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श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान / ६१
प्रकृति स्वातिसंस्थान स्वबल से हे स्वामी मैं नाश करूँ । प्रभु संस्थान नामकर्म के छह भेदों का नाश करूँ । नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख - मूल ।
निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥३१॥ ॐ ह्रीं स्वातिसंस्थाननामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि. । कुब्जक संस्थान की हे प्रभु प्रकृति आज मैं नाश करूँ । प्रभु संस्थान नामकर्म के छह भेदों को नाश करूँ । नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल । निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥३२॥ ॐ ह्रीं कुब्जकसंस्थाननामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि. । वामन संस्थान की हे प्रभु प्रकृति आज मैं नाश करूँ । प्रभु संस्थान नामकर्म के छह भेदों को नाश करूँ । नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख-मूल ।
निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥३३॥ ॐ ह्रीं वामनसंस्थाननामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि. । हुण्डक संस्थान की हे प्रभु प्रकृति आज मैं नाश करूँ । प्रभु संस्थान नामकर्म के छह भेदों को नाश करूँ ।। नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख - मूल ।
निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥३४॥ ॐ ह्रीं इंडकसंस्थाननामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि. । संहनन नामकर्म के छह भेदों की सत्ता नाश करूँ । वज्रवृषभ नाराच संहनन का भी पूर्ण विनाश करूँ । नामकर्म की सर्व प्रकृतियाँ हैं तिरानवे भवदुख - मूल ।
निज पुरुषार्थ शक्ति से सबको नाश करूँ मैं नाथ समूल ॥३५॥ ॐ ह्रीं वज्रवृषभनाराचसंहनननामकर्मविरहितश्रीसिद्धपरमेष्ठिभ्यो अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्यं नि. ।