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श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान/१
श्री सिद्धपरमेष्ठी विधान (श्री कर्मदहन विधान)
मंगलाचरण
(अनुष्टुप) मंगलं सिद्धपरमेष्ठी मंगलं तीर्थंकरम् । मंगलं शुद्धचैतन्यं आत्मधर्मोऽस्तुमंगलम्॥ मंगलं शुद्धज्ञानाय तत्त्वनिर्णय मंगलम्। मंगलं सर्वसर्वज्ञ आत्मनिर्णय मंगलम्॥
. (दोहा) . जयति पंचपरमेष्ठी, जिनप्रतिमा जिनधाम। जय जगदम्बे दिव्यध्वनि, श्री जिनधर्म प्रणाम। माँ जिनवाणी की कृपा, मुझे मिले दिन-रात। भेदज्ञान बल प्राप्त कर, पाऊँ समकित प्राप्त॥
__(चामर) वीतराग श्री जिनेन्द्र ज्ञानरूप मंगलम्। गणधरादि सर्व साधु ध्यानरूप मंगलम्॥ आत्मधर्म विश्वधर्म सार्वधर्म मंगलम्। वस्तु का स्वभाव ही अनाद्यनंत मंगलम्॥ कर्म नाश की सुविधि कर्म वसु क्षयकरम्। . सर्व श्री सिद्ध भगवन्त प्रभु मंगलम् ॥