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उपसंहार में लिखित अध्यात्मभावों को जो समझेंगे, उनका अवश्य कल्याण होगा। 'मोक्षमार्ग क्या और बन्धमार्ग क्या" - ये दोनों ही इसमें स्पष्ट भिन्न बताये गए हैं, तदनुसार ही समझ लेने से सम्यग्दर्शन होकर स्वाश्रित अध्यात्मपद्धति प्रगट होगी अर्थात् मोक्षमार्ग प्रारम्भ होगा - यही अपूर्व कल्याण है।
इस वचनिका के परमार्थ भावों को समझकर सभी जीव अपूर्व कल्याण प्राप्त करें - ऐसी भावना है।
इसप्रकार पण्डित श्री बनारसीदासजी द्वारा लिखित अध्यात्म रस भरपूर ‘परमार्थवचनिका' समाप्त हुई।
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सोई समकिती भवसागर तरतु है जाके घट प्रगट विवेक गणधर को सौ,
हिरवै हरखि महामोह को हरतु है। साचौं सुख मा. निज महिमा अडोल जाने,
आपु ही मैं आपनौ सुभाउ ले धरतु है। जैसे जल-कर्दम कतकफल' भिन्न करै,
तैसें जीव-अजीव विलछनु करतु है। आतम सकति साधैं ग्यान को उदौ आपसाथै, सोई समकिती भवसागर तरतु है॥८॥
- पण्डित बनारसीदासजी, नाटक समयसार, मंगलाचरण