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परमार्थवचनिका प्रवचन
प्रश्न - यह राजमार्ग है तो दूसरा कोई ऊबड़-खाबड़ मार्ग तो होगा.
न?
उत्तर-ऊबड़-खाबड़ मार्ग भी राजमार्ग से विरुद्ध नहीं होता। राजमार्ग पूर्व की तरफ जाता हो और ऊबड़-खाबड़ मार्ग पश्चिम की तरफ जाता हो - ऐसा तो नहीं बनता। भले मार्ग ऊबड़-खाबड़ हो, परन्तु उसकी दिशा तो राजमार्ग की तरफ ही होगी न? उसीप्रकार सम्यग्दर्शन-ज्ञान उपरान्त शुद्धोपयोगी चारित्रदशा – वह तो मोक्ष का सीधा राजमार्ग है, उससे तो उसी भव में ही केवलज्ञान और मोक्षपद प्राप्त हो सकता है और ऐसी चारित्रदशा बिना जो सम्यग्दर्शनज्ञान है, वह अभी अपूर्ण मोक्षमार्ग होने से ऊबड़-खाबड़ कहा जाता है, वह कुछ ही भव में मोक्षमार्ग पूर्ण करके मोक्ष को साधेगा। पूर्ण मोक्षमार्ग अथवा अपूर्ण मोक्षमार्ग, परन्तु इन दोनों की दिशा तो स्वभाव तरफ की ही है; एक की भी दिशा राग की तरफ नहीं है। रागादिभाव तो मोक्षमार्ग से विपरीत हैं अर्थात् बन्धमार्ग है, इन रागादि से मोक्षमार्ग नहीं सध सकता। मोक्षमार्ग के आश्रय से बन्धन नहीं और बन्धमार्ग के आश्रय से मोक्ष नहीं।
राग के समय उसका निषेध करनेवाला जो सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान है, वही मोक्षमार्ग है। ऐसा सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान उदित होने पर ही सच्चा मोक्षमार्ग प्रारम्भ होता है। सम्यग्दृष्टि स्वानुभव के प्रमाण में मोक्षमार्ग साधता है। शुभराग के प्रमाण में मोक्षमार्ग नहीं सधता- वह तो बन्धपद्धति
_ “तो क्या सम्यग्दृष्टि अध्यात्म के ही विचार में रहता होगा? क्या बन्धपद्धति का विचार ही उसको नहीं आता होगा?” ऐसा किसी को प्रश्न उत्पन्न हो तो अग्रिम प्रकरण में उसका समाधान करेंगे।
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