SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नियमसार अनुशीलन - अशुभ से तो मैं पराङ्मुख हूँ; शास्त्ररचना आदि का शुभविकल्प वर्तता है, उससे भी मैं उदासीन हूँ और साक्षात् शुद्धोपयोग के सन्मुख हूँ तथा परमागमरूपी अमृतरस जिसके मुखकमल में से झरता है - ऐसा हूँ मैं पद्मप्रभ, उसके शुद्धोपयोग में भी परमात्मा ही वर्तता है। हमारे मुख में से जो वाणी निकली, वही परमागमरूपी पुष्प का रस है। देखो तो मुनि के आत्मा का जोर! केवलज्ञान नहीं है, मतिश्रुतज्ञान है; उसके जोर से कहते हैं कि हमारे मुख में से जो वाणी झरती है, वह परमागम है। जो बात टीका में है, वही बात केवली भगवान की वाणी में और कुन्दकुन्दाचार्य के हृदय में रहती है। मुनि स्वयं आत्मा की साक्षी से कहते हैं कि हमारी वाणी ही परमागम है, वह त्रिकाल में भी फिरनेवाली नहीं है। ऐसा जो मैं पद्मप्रभ मुनि हूँ, उसके शुद्धोपयोग में भी वह परमात्मा रहता है। शुद्धोपयोगपर्याय आत्मा के साथ अभेद हो जाती है, अतः उसमें आत्मा ही है; क्योंकि वह परमात्मा सनातन-स्वभाववाला है। ध्रुव चैतन्यदल त्रिकाल पड़ा है; वही उपादेय है। उसके आश्रय से ही सम्यग्दर्शन है, सम्यग्ज्ञान है और सम्यक्चारित्र है तथा सच्चा प्रत्याख्यान है। उसके आश्रय से ही संवर और सच्चा योग है। ऐसे आत्मा के भान बिना ये सम्यग्दर्शनादि एक भी नहीं होते।" ___ यह गाथा और उसकी टीका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इनमें कहा गया है कि सन्तों को तो सर्वत्र एक आत्मा ही उपादेय है। आचार्य कुंदकुंद और टीकाकार पद्मप्रभमलधारिदेव उत्तम पुरुष में बात करके ऐसा कह रहे हैं कि मुझमें और मेरे दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप में; तथा प्रत्याख्यान और शुद्धोपयोग में एकमात्र आत्मा ही है, उसी की मुख्यता है। __यद्यपि पद्मप्रभमलधारिदेव का यह कथन कि हमारे मुख से परमागम का मकरंद झरता है, कुछ गर्वोक्ति जैसा लगता है; तथापि यह उनका . आत्मविश्वास ही है; जो उनके आध्यात्मिकरस को व्यक्त करता है।।१००|| इसके बाद टीकाकार मुनिराज तथा चोक्तमेकत्वसप्ततौ - तथा १. नियमसार प्रवचन, पृष्ठ ८०१-८०२
SR No.007131
Book TitleNiyamsar Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2010
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy