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________________ जीव, बन्धन और मोक्ष इन्द्रिय प्राप्त है, जिससे इन्हें आंशिक रूप से केवल स्पर्श का ज्ञान होता है। तत्त्वार्थाधिगम सूत्र में स्पष्ट कहा गया है: वनस्पत्यन्तानाम् एकम्। अर्थ-वनस्पति तक, अर्थात् पृथ्वीकायिक (पृथ्वी की कायावाले सूक्ष्मतम परमाणुरूप जीव) जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पति तक के जीवों में केवल एक स्पर्शेन्द्रिय होती है। वनस्पति (पेड़-पौधे) चल-फिर नहीं सकते। इसलिए उन्हें 'स्थावर' जीव कहा जाता है। शेष सभी संसारी जीव चल-फिर सकते हैं। इसलिए उन्हें 'त्रस' कहा जाता है। __ वनस्पति से ऊपर की श्रेणी में कीड़े-कीटाणु, पिपीलिका (चींटी), भौरे और मनुष्य हैं जिनमें क्रमशः एक-एक इन्द्रिय अधिक होती है, जैसा कि तत्त्वार्थाधिगम सूत्र में कहा गया है: कृमि-पिपीलिका-भ्रमर-मनुष्यादीनाम् एकैक वृद्धानि।' अर्थ-कृमि, पिपीलिका, भ्रमर और मनुष्य आदि में क्रमशः एक-एक इन्द्रिय अधिक होती जाती है। ___ इस प्रकार कीड़े और कीटाणुओं को दो इन्द्रियाँ होती हैं-स्पर्शेन्द्रिय और रसनेन्द्रिय (जिह्वा), जिनसे ये क्रमशः स्पर्श और स्वाद का अनुभव करते हैं। फिर चींटियों को तीन इन्द्रियाँ होती हैं-स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, और घ्राणेन्द्रिय (नाक), जिनसे ये क्रमशः स्पर्श, स्वाद और गन्ध का अनुभव करती हैं। फिर भौरे आदि जीवों को चार इन्द्रियाँ होती हैं-स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय और नेत्रेन्द्रिय (आँख), जिनसे ये क्रमश: स्पर्श, रस (स्वाद), गन्ध और रूप-रंग का अनुभव करते हैं। अन्त में उच्च पशु-पक्षियों तथा मनुष्यों को पाँचों इन्द्रियाँ होती हैं-स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, नेत्रेन्द्रिय और श्रवणेन्द्रिय (कान), जिनसे वे क्रमशः स्पर्श, रस, गन्ध, रूप और शब्द का अनुभव करते हैं। देव योनि के जीवों, नारकी जीवों और मनुष्यों को इन पाँचों इन्द्रियों के अतिरिक्त एक आन्तरिक इन्द्रिय भी प्राप्त होती है,
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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