________________ जैन धर्म किसी घेरे में, सम्प्रदाय में, वेष में या शरीर की क्रिया में नहीं है, किन्तु आत्मस्वरूप की पहिचान में ही जैन धर्म है-जैनत्व है। 0 यः परात्मा स एवाहं योऽहं स परमस्ततः। जो परमात्मा है, वही मैं हूँ, तथा जो स्वानुभवगम्य मैं हूँ, वही परमात्मा है। सत्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम्। माध्यस्थ-भावं विपरीत-वृत्तौ, सदा ममात्मा विदधातु देव! भगवन् ! संसार के सम्पूर्ण प्राणियों से मित्रता, गुणी पुरुषों को देखकर प्रसन्नता, दुःखी जीवों पर दयार्द्रता और अकारण द्वेष करनेवालों या दुष्ट जीवों पर माध्यस्थता अर्थात् न राग, न द्वेष, मेरी आत्मा निरन्तर धारण करे। Jain Dharm-Saar Sandesh (Hindi) ISBN 978-81-8256-924-9