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19. हीरालाल जैन (सम्पादक), जैनधर्मामृत, पृ. 295
20. कुन्थुसागरजी महाराज, श्रावक प्रतिक्रमण सार, तृतीय संस्करण, शिखरचन्द्र कपूरचन्द,
जैन धर्म : सार सन्देश
जबलपुर, 1957, पृ. 23
21. हुकमचन्द भारिल्ल, तीर्थंकर महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ, पृ. 141-142
22. हीरलाल जैन (सम्पादक), जैनधर्मामृत, पृ. 36 और 283
23. वही, पृ. 282-283
24. वही, पृ. 284-285
25. वही, पृ. 298-299 और 37
26. शुभचन्द्राचार्य, ज्ञानार्णव 32/1, पृ. 316
27. इस तथ्य को जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश में इस प्रकार स्पष्ट किया गया है:
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'कारण परमात्मा देश कालावच्छिन्न (स्थान और समय में सीमित न रहनेवाला) शुद्ध चेतन सामान्य तत्त्व है, जो मुक्त व संसारी तथा चींटी व मनुष्य सब में अन्वय रूप से (बिना कभी अनुपस्थित हुए) पाया जाता है। - जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग 3,
"
वीर सेवा मन्दिर, देहली, संवत् 2021, पृ. 19
28. हीरलाल जैन (सम्पादक), जैनधर्मामृत, पृ. 268 29. वही,
पृ. 42
30. वही, पृ. 29
31. शुभचन्द्राचार्य, ज्ञानार्णव 32/8, पृ. 317
32. वही 42 / 73-75 और 81 पृ. 443- 445 ( लेखक द्वारा अनूदित )
33. आदिपुराण 23/142-143 / 154 155,158, 160 और 162 पृ. 560-561
और 563-564
34. शुभचन्द्राचार्य, ज्ञानार्णव 31/29-30, 41, 31-34 पृ. 313-316 (लेखक द्वारा अनूदित )
35. पतञ्जलि कृत योगसूत्र 1.26
36. शुभचन्द्राचार्य, ज्ञानार्णव 31/ 36, पृ. 314
37. शुभचन्द्राचार्य, ज्ञानार्णव 31/37-39 पृ. 315
38. हीरालाल जैन (सम्पादक), जैनधर्मामृत, पृ. 43
39. दौलतराम जी, छहढाला, सटीक, द्वितीय आवृत्ति, श्री सेठी दि. जैन ग्रन्थमाला, बम्बई,
वीर संवत् 2489, पृ. 51
40. हीरलाल जैन (सम्पादक), जैनधर्मामृत, पृ. 42-43
41. शुभचन्द्राचार्य, ज्ञानार्णव 31/ 22, पृ. 312