SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 336 जैन धर्म: सार सन्देश ____ आदिपुराण के उक्त कथन से यह स्पष्ट हो जाता है कि परमात्मा का ध्यान करनेवाला साधक (अभ्यासी) ही मोक्षसुख की प्राप्ति करता है। यह अभ्यासी परमात्मा की दिव्यध्वनि के सहारे ही ध्यानमग्न होकर परमात्मा का ज्ञान (अनुभव) प्राप्त करता है। इसलिए हमें एकमात्र इस परमात्मा का ही चिन्तन और ध्यान करना चाहिए। इस परमात्मा को ही सभी गुरुओं का गुरु कहा गया है, क्योंकि संसार में आनेवाले सभी सच्चे गुरु वास्तव में उस निराकार परमात्मा के ही साकार रूप होते हैं। शुभचन्द्राचार्य ने भी ज्ञानार्णव में इन तथ्यों की पुष्टि बड़ी ही स्पष्टता के साथ की है। परमात्मा का स्वरूप उनके ध्यान की महत्ता और उससे प्राप्त परमात्मा के ज्ञान की सर्वश्रेष्ठता बतलाते हुए वे कहते हैं: जिसके ध्यानमात्र से जीवों के संसार में जन्म लेने से उत्पन्न (राग-द्वेष आदि) रोग नष्ट हो जाते हैं, अन्य किसी प्रकार से नष्ट नहीं होते, वही त्रिभुवननाथ अविनाशी परमात्मा है। इसमें सन्देह नहीं कि जिसे जाने बिना अन्य सभी पदार्थों को जानना भी निरर्थक है और जिसका स्वरूप जानने से समस्त विश्व जाना जाता है, वही परमात्मा है। जिस परमात्मा के ज्ञान के बिना यह प्राणी निश्चित रूप से संसाररूपी गहन वन में भटकता रहता है, तथा जिस परमात्मा को जानने से जीव तत्काल इन्द्र से भी अधिक महत्ता को प्राप्त हो जाता है, उसे ही साक्षात् परमात्मा जानना। वही समस्त लोक को आनन्द देनेवाला निवास-स्थान है, वही परम ज्योति (परम प्रकाशमय ज्ञानरूप) है, और वही त्राता (रक्षक) है, परम पुरुष है, अचिन्त्यचरित है, अर्थात् जिसका चरित किसी के चिंतवन में नहीं आता। जिस परमात्मा के स्वरूप को जाने बिना आत्मतत्त्व में स्थिति नहीं होती है, और जिसे जानकर मुनियों ने उसके ही ऐश्वर्य का साक्षात् अनुभव प्राप्त किया है, वही परमात्मा मुक्ति की इच्छा करनेवाले मुनिजनों द्वारा नियम-पूर्वक ध्यान करने योग्य है। इसलिए अन्य सबकी शरण
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy