SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 314 जैन धर्म : सार सन्देश समय में उपयोग करने योग्य है, अर्थात् ध्यान इच्छानुसार सभी समयों में किया जा सकता है, क्योंकि सभी देश (स्थान), सभी काल (समय) और सभी चेष्टाओं (आसनों) में ध्यान धारण करनेवाले अनेक मुनिराज आज तक सिद्ध हो चुके हैं, अब हो रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे । इसलिए ध्यान के लिए देश, काल और आसन वगैरह का कोई खास नियम नहीं है। जो मुनि जिस समय, जिस देशमें और जिस आसन से ध्यानको प्राप्त हो सकता है उस मुनिके ध्यान के लिए वही समय, वही देश और वही आसन उपयुक्त माना गया है। 104 ध्यानशतक के श्लोक 38-41 की व्याख्या करते हुए कन्हैयालाल लोढ़ा और सुषमा सिंघवी ने भी ध्यान के समय, स्थान और आसन के सम्बन्ध में इसी विचार की पुष्टि की है। वे कहते हैं: ध्यान करनेवाले के लिए किसी निश्चित दिन, रात्रि और वेला का नियम नहीं बनाया जा सकता। परिपक्व ध्याता किसी भी काल में निर्बाध रूप से (बिना बाधा के ) ध्यानस्थ हो सकता है। ध्यान के लिए पद्मासन, वज्रासन, खड्गासन आदि कोई आसन-विशेष आवश्यक नहीं है। जिस आसन से सुख और स्थिरतापूर्वक बैठा जाय, ध्यान के लिए वही आसन उपयुक्त है। सभी देश, सर्वकाल और सर्वचेष्टा (आसनों) में विद्यमान (स्थित होकर ), उपशान्त दोषवाले ( विकाररहित) अनेक मुनियों ने (ध्यान के द्वारा) उत्तम केवलज्ञान आदि की प्राप्ति की है, अतः ध्यान के लिए देश, काल, चेष्टा (आसन) का कोई नियम नहीं है किन्तु जिस प्रकार से मन, वचन और काया के योगों (क्रियाओं) का समाधान (स्थिरता) हो, उसी प्रकार का प्रयत्न करना चाहिए। 105 ध्यान के लिए शान्त और स्थिर होना अत्यन्त आवश्यक है। इस बात को स्पष्ट करते हुए कन्हैयालाल लोढ़ा अपनी एक अन्य पुस्तक में कहते हैं:
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy