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________________ जैन धर्म : सार सन्देश साधारण व्यक्ति पर शायद नहीं होगा। इसी प्रकार दिव्यध्वनि का अनुभव और प्रभाव मनुष्यों की प्रवृत्ति और शक्ति की भिन्नता के कारण विभिन्न रूप में दीख पड़ता है । पर जो साधक उचित युक्ति के अभ्यास द्वारा ऊँचे आध्यात्मिक पद पर पहुँच जाते हैं, उन्हें दिव्यध्वनि का अनुभव एक समान ही होता है, और वे एक समान ही दिव्यध्वनि से प्रभावित होते हैं। 224 एक ही भाषा के अनेक भाषाओं के रूप में परिणमन होने की बात भी एक अन्य उदाहरण द्वारा समझी जा सकती है। हम जानते हैं कि अपनी मातृभाषा या अपनी बोलचाल की भाषा के साथ हम कितने घुले-मिले होते हैं। उससे हमारा इतना गहरा सम्बन्ध होता है कि हम अक्सर उसी भाषा में सोचने-विचारने या अर्थ ग्रहण करने के अभ्यस्त हो चुके होते हैं । यदि हमारी मातृभाषा हिन्दी है तो हम संस्कृत, अँग्रेज़ी, आदि अन्य किसी भी भाषा को पढ़ते समय या अन्य किसी भाषा में लिखित विषय पर विचार करते समय प्रकट या अप्रकट रूप से हिन्दी में उसका तरजुमा (रूपान्तर) करते हुए उसे पढ़ते या उस विषय पर विचार करते हैं। यदि किसी सभा में कोई व्याख्याता अँग्रेज़ी में व्याख्यान दे रहा होता है और उस सभा में हिन्दी, बंगला, गुजराती, मराठी आदि मातृभाषावाले व्यक्ति उसे सुन रहे होते हैं, तो सभी स्वाभाविक रूप से अपनी-अपनी भाषा में तरजुमा करते हुए उसे ग्रहण करते हैं । इस प्रकार व्याख्याता की अँग्रेज़ी भाषा श्रोताओं के कानों तक पुहँचने पर स्वाभाविक रूप से श्रोताओं की विभिन्न भाषाओं में परिणत होती जाती है। इस उदाहरण द्वारा हम समझ सकते हैं कि एक ही निरक्षरी दिव्यध्वनि को अनेक भाषा बोलनेवाले किस तरह अपनी-अपनी भाषा में ग्रहण करते हैं । इसी भाव को दरसाते हुए गोम्मटसार में इस प्रकार कहा गया है: केवली की दिव्यध्वनि जबतक सुननेवालों के कर्णप्रदेश (कानों के छिद्रों) को प्राप्त नहीं करती तब तक यह अनक्षरी ही है... पर जब सुननेवालों के कानों का विषय बन जाती है तब वह अक्षरात्मक होकर यथार्थ उपदेशों के वचन के रूप में संशयादि को दूर करती है | 24 इस सम्बन्ध में एक और उदाहरण दिया जा सकता है। जिस प्रकार आजकल एक ही भाषा विभिन्न अनुवादक - यन्त्रों द्वारा एक साथ ही अनेक
SR No.007130
Book TitleJain Dharm Sar Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Upadhyay
PublisherRadhaswami Satsang Byas
Publication Year2010
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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