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साधना पथ निकालना; अन्यथा मनुष्यभव ऐसे ही जाता रहेगा। ज्ञानी ने मंत्र दिया, वह ही मेरा है। वह आत्मा ही दिया है। मोक्षमार्ग पर जाना हो तो यह मंत्र जपना। अब शेष जीवन में यही करना है।
"मंत्र मंत्र्यो स्मरण करतो काळ काहुँ हवे आ, .. ज्याँ त्याँ जोवू पर भणी भूली, बोल भूलुं पराया; आत्मा माटे जीवन जीवq लक्ष राखी सदाये, पामुं साचो जीवन पलटो, मोक्षमार्गी थवा ने।” (प्रज्ञावबोध - ७५) मंत्र से मन्त्रित हो जाना। पराए बोल भूलकर ज्ञानी के बोल में चित्त रखना। जगत के कामों का चाहे जो हो, पर अपने को तो कृपाळुदेव के वचनों में ही रहना है। प्रभुश्रीजी कहते थे, पागल हो जाओ। स्मरण में रहो।
(८२) बो.भा.-१ : पृ.-२६६ जो जो सुना हो उसका निवृत्ति में विचार करें। मनुष्यभव किसलिए मिला है? किसमें समय ज्यादा जाता है? क्षण-क्षण आयु बीत रही है। वैराग्य और उपशम बिना जीव का कल्याण नहीं। संसार में कुछ प्रिय करने जैसा नहीं। आज ही मानो मर गए, ऐसा कर लें तो थोड़े काल में बहुत काम हो जाएँ। घूमने जाते विचार करें कि आज पढ़ने में क्या आया था? क्या याद रहा? समय मात्र का प्रमाद न करें। एक समय में सित्तेर कोड़ा कोड़ी सागरोपम का कर्म यह मन बाँध सकता है। कुछ न हो तो स्मरण में मन रखना।
कृपाळुदेवके हाथ पैर देखना नहीं, पर आत्मा देखने का है। कायोत्सर्ग में खड़े है, वे शुद्धभाव में खड़े है। जिस तरह छोटे बच्चे को कोई मारे, तो वह तुरंत माँ के पास जाता है। उसी तरह हमें जब विकल्प आये, तब तुरंत ही कृपाळुदेव की स्मृति करें।
(८३) बो.भा.-१ : पृ.-२६६ वेदना में वृत्ति जाती हो, तो वहाँ से हटाकर स्मरण में जोड़ना। वेदना में ज्यादा बल करना है। क्षण-क्षण आत्मा की संभाल जीव बढ़ाएगा, .