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साधना पथ तो कल्याण होगा। स्मरण है वह कृपालुदेव का स्वरूप है। वेदना में गजसुकुमार जैसे महापुरुषों के चरित्र पर विचार करना। कृपालुदेव ने हमें स्मरण दिया है। वह कृपालुदेव का ही स्वरूप है यह लक्ष्य रखकर आत्मभावना करें।
कृपालुदेव की भक्ति और मनुष्यभव को सफल करने के लिए सात व्यसन का त्याग, प्रथम सीढ़ी है। वह न हो तो भक्ति न होगी। जीव मोह के आधीन हो जाता है, पर उस के फल का ख्याल नहीं करता। ज्ञानियों ने पाप छोड़ने के लिए कहा है। पाँच उदंबर फल अभक्ष्य हैं, उनमें बहुत जीव हैं, उनका त्याग करना। मक्खन इन्द्रियों को उन्मत्त करता है। भक्ति करनी हो तो इन्द्रियाँ वश में होनी चाहिए। शहद में भी बहुत जीव हैं। ये सात अभक्ष्य वस्तुएँ पाप बंधाने वाली, दुःख में ले जानेवाली हैं। इसका त्याग करें।
(८४) बो.भा.-१ : पृ.-२७४ ___ मुमुक्षुः- पाँच इन्द्रियाँ कैसे वश हो? (उपदेशछाया-४)
पूज्यश्रीः- पाँच इन्द्रियों के विषय जड़ हैं। परवस्तु के संयोग से उत्पन्न होते हैं। परवस्तु में आत्मा का हित नहीं। जो वस्तु अपने साथ रहनेवाली नहीं, उसमें आसक्ति क्या करना? आसक्ति से संसार बढ़ता है, ऐसा विचार आए तो विषय तुच्छ लगें। सब का वास्तविक विचार एक सत्संग से होता है। मोह के कारण, जगत की वस्तुओं की महत्ता है। अविवेक के कारण पर वस्तु की महत्ता है। सत्संग से विचार जागते हैं। विचार से विवेक आए, तो पर वस्तु की महत्ता कम होती है। पंचेन्द्रियों के विषय पाँच साँप है। ऊपर ऊपर से अच्छे लगते हैं, पर इनमें रमण करें तो मृत्यु पाएँ। एक एक इन्द्रिय विषय के कारण जीव मर जाता है। रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्दादि विषय दुःखकारी हैं, उनका विचार करें तो फिर इनमें विश्वास नहीं आता। - पाँचों इन्द्रियों में एक जिह्वा इन्द्रिय वश हो, तो अन्य चार भी वश हो जाती हैं। सद्विचार सब का आधार है। जिह्वा इन्द्रिय में आसक्त हो