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साधना पथ तो फिर इसे जीभ नहीं मिलती। एकेन्द्रिय बनता है। आगे पीछे का विचार करे तो आसक्ति न हो। अब जन्म-मरण नहीं बढ़ाना। पाँच इन्द्रिय के विषय बढ़ाने के लिए यह मानव देह धारण नहीं किया। यह आत्मा चिंतामणि जैसा है, जो मांगो, वह दे। अपनी होश नहीं। अपना विचार होता नहीं। पर वस्तु तरफ दृष्टि है। अज्ञान का भय लगा नहीं। संसार भय रूप लगे, तभी उपदेश भी काम करता है। बोध की कमी है। सत्पुरुष के प्रति जितना स्नेह करना चाहिए उसका एक अंश भी नहीं। ज्ञानीपुरुष के प्रति प्रेम हो तो एक वचन भी काम कर जाए, उनका उपकार समझा नहीं। "एक अंश साता से लेकर पूर्णकामता तक की सर्व समाधि का कारण सत्पुरुष ही है।" (श्री.रा.प.-२१३) जो कुछ सुख मिलता है, वह ज्ञानीपुरुष से ही मिलता है। मूल कारण ज्ञानी पुरुष ही है।
(८५) बो.भा.-१ : पृ.-२७५ जगत में बहुत सारी बातें सुनने को मिलती हैं, पर अपने को तो बैठे बैठे स्मरण करना है। ज्ञानीपुरुष के वचनों में चित्त रहे तो जीव का काम हो जाए। जो रास्ता लिया है, उसी पर चलो। चार-पाँच जगह, चार-पाँच हाथ खोदे, तो पानी नहीं निकलता। एक लक्ष्य रखो कि काम एक आत्मा का करना है। देह का बहुत किया। मृत्यु का पता नहीं, अतः धर्म में ढील न करो। कर लिया, वह काम। थोड़ा सुबह, थोड़ा दोपहर को, थोड़ा शाम को, नियमित काम करें तो बहुत हो सकता है। कहीं भी आसक्ति न होने दें। आयु कम है। प्रारब्ध अनुसार ही आना-जाना होता है। आत्मा का हित करना है। अल्प भी नियम लिया हो, तो तोड़ना नहीं। कच्चे पानी की अपेक्षा गर्म पानी पीने से विकार नहीं होते। प्रासुक पानी पीने से ब्रह्मचर्य को मदद मिलती हैं। संसार असार है। विरक्त भाव रखें। अशुभ निमित्तों में न जाएँ। ___रात्रि को रोज भक्ति के बाद, कृपालुदेव के वचनामृत में से प्रभुश्री जी को लिखे हुए पत्रों में से क्रमशः प्रत्येक पत्र पढ़ने का नित्य नियम कर लें।