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साधना पथ विचार बहुत करना। दिवस में पन्द्रह मिनट भी विचार करो, एकांत में बैठ कर। स्मरण की आदत डालनी। चलते-फिरते स्मरण करना। समाधि मरण करना हो तो रोम-रोम में परम प्रेम प्रगटाना होगा।
"पर प्रेम प्रवाह बढ़े प्रभु सें, सब आगम भेद सुउर बसें।"
इस तरह रोज बोलते हैं, परन्तु परम प्रेम कैसा होगा? कैसे करना है? उस पर दृष्टांत वैष्णव का है, पर समझने जैसा है।
एक बार अर्जुन द्वारका गया। श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा थी। उससे शादी हुई और वह वहीं रहने लगा। श्री कृष्ण तो रोज खाया न खाया कि तुर्त अर्जुन के पास जाकर बैठ जाता। रानियाँ विचार करती हैं कि अर्जुन के आने से इनका हम पर प्रेम कम हो गया है। सारा दिन वहाँ बैठे बैठे श्री कृष्ण क्या करते हैं, जा कर देखें। अर्जुन वनक्रीडा करके घर आया था। स्नान करके, थकावट होने से सो गया था। श्री कृष्ण और सुभद्रा उंगलियों से उसके बाल सुखा रहे थे, अर्जुन के सिर के पास ही बैठे थे। इतने में रूक्मणी वहाँ पहुच गई। श्री कृष्ण ने उसे देख कर इशारे से कहा, बैठ, तूं भी बाल सुखा। रूकमणी भी बाल सुखाने बैठ गई। कृष्ण ने, बाल सुखे या नहीं, यह देखने के लिए अपने गाल से छुए और रुक्मणी को भी ऐसा ही करने का इशारा किया। रुक्मणी अर्जुनके बालों को थोड़ा सा कान के पास तक लाई तो उसे हर तार में से कृष्ण, कृष्ण ऐसी ध्वनि होती सुनाई दी। श्री कृष्ण ने कहा कि अर्जुन वन में जाए या नगर में, उसका चित्त तो मेरे में ही रहता है। नींद में भी इसे ऐसा ही है। भूलता नहीं। इस पर से रूक्मणी समझ गई। . _ ऐसा परम प्रेम ज्ञानी परमकृपालुदेव के प्रति अपने को रखना है, जिस से धर्म का मर्म समझ में आए और परिणामतः आत्मा शाश्वत मोक्ष को प्राप्त करे।