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साधना पथ
श्री ऋषभदेव भगवान ८३ लाख पूर्व वर्ष घर में रहे, संयम लेने का भाव न हुआ फिर इन्द्रने नीलांजना नामक अप्सरा को, जिसका आयुष्य क्षीण होने आया था उसे भगवान की सभा में नाच करने भेजा। नाचतेनाचते उसकी आयु पूरी हो गई। उस अप्सरा के शरीर के सव परमाणु बिखर गए, परन्तु इन्द्र ने विक्रिया से, किसी को पता न लगे, इस तरह फिर वैसी की वैसी अप्सरा नाचती हुई दिखाई। सभासदों को पता भी न चला कि अप्सरा की मृत्यु हो गई है। पर ऋषभदेव भगवान अवधिज्ञान वाले थे। अतः उन्होंने उपयोग से जान लिया कि यह मर गई है, उसे देखकर वैराग्य हो गया। - उपादान बलवान था, तथापि योग्य निमित्त मिला तो जग गए।
अच्छे निमित्तो में रहना। सत्संग करना। उपादान कारण बलवान न हो और गलत पुरुषों का संग करें तो संसार बढ़ जाता है।
... (७९) बो.भा.-१ : पृ.-२४९ स्मरण की आदत डालनी। किसी भी तरह से इच्छाएँ कम करना। __ “हे जीव! क्या इच्छत हवे? है इच्छा दुःख मूल;
जब इच्छाका नाश तब, मिटे अनादि भूल।" (हा.१.१२) . कचरे में रत्न पड़ा हो तो बुद्धिशाली व्यक्ति रत्न पर दृष्टि करता है, विष्टा पर नहीं करता। उसी तरह देहरूपी कचरे में आत्मारूपी रत्न है, उस पर दृष्टि करना। देह, विष्टारूप है। जीव पुत्रादि पर मोह करता है
और कराता है, वह आमने-सामने जहर पीता है और पिलाता है। जीव ने पितृत्व-मातृत्व करने में ही आनन्द माना है। _ जीव यदि निरन्तर पुरुषार्थ में लगा ही रहे तो आठ दिन में काम हो सकता है। अंजन चोरने दृढ़ता से आकाशगामिनी विद्या सिद्ध करके मेरु पर्वत पर जिनदत्त सेठ के पास जाकर चैत्यालयों में पूजा करके, चारण मुनि के पास दीक्षा लेकर आठ दिन की आयु शेष होने से अनशन कर, कर्म क्षय कर मोक्ष गये। ।