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________________ (८२) साधना पथ एक बनिया था। वह परदेश में गया, बहुत धन कमाया। वापिस अपने घर आ रहा था। रास्ते में ठग चोर मिल जाएँ तो कैसे धन का बचाव करूँ, इस के बारे में सोचने लगा। उसने सारा धन देकर तीन रत्न खरीद लिए। आगे चला। जंगल में ठग मिले। उसने रत्नों को वृक्ष की कोटर में छुपा दिया और भिखारी का वेष पहनकर जोर से बोलने लगाः 'रत्न बनिया जा रहा है, रत्न बनिया जा रहा है।' ठगों ने पकड़ा पर रत्न नहीं मिले। लोगों ने उसे पागल समझा। दो दिन वह ऐसे बोलता हुआ इधर उधर घूमता रहा। तीसरे दिन तीनों रत्न लेकर जाने लगा तब भी वैसे ही बोलता रहा। ठगों ने पागल समझकर कुछ न पूछा, जाने दिया । ज्ञानी के वचन लक्ष्य में रखो। ज्यादा बुद्धिमान मत बनो। एक मंत्र मिला है, उसके पीछे लगे रहो। पागल बन जाओ, अगर आत्म हित करना है। लोग कौओं को पिंजरे में नहीं रखते, तोते को क्यों रखते हैं ? बुद्धिमान बन जाता है। होशियारी दिखानी नहीं तथा स्वयं को होशियार मानना भी नहीं । ज्ञानी ने कहा, वह ही सच है। ज्ञानी सव जानते हैं। ज्ञानी के कथन अनुसार काम करते रहो । एक भव ज्ञानीकी आज्ञामें जीवन समर्पित करो। (७७) बो. भा. - १ : पृ. २४० लक्ष्य एक सत्संग का रखना, चाहे कहीं भी घूमो - फिरो । परन्तु लक्ष तो एक आत्मा का रखना । आत्म-हित कैसे हो ? यह विचार करना । मनुष्यभव मिला है तो सच्ची वस्तु को प्राप्त करना । आत्मा जैसी कोई वस्तु नहीं है। रत्न जैसी वस्तु है। मुफ्त में नहीं मिलती। (७८) बो. भा. - १ : पृ. २४९ जगतवासी जीवों को अच्छे निमित्त से अच्छे भाव होते हैं। खराब मत्से खराब भाव होते हैं । निमित्त तो अच्छे ही रखना। अच्छे निमित्त का उपादान भी अच्छा ही होता है । प्रभुश्रीजी कहते थे सुन सुन करो ! जैसा संग वैसा जीव होता है। अशुभ निमित्तों का त्याग करना । संसार, अशुभ निमित्त रूप और अनन्त कुसंगरूप हैं।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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