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________________ ७६ साधना पथ ऐसे विचार आएँ। उसने हेमचंद्राचार्य से पूछा कि मुझे ऐसे विचार आएँ हैं, तो क्या करूँ? गुरुने दांत तोड़ने का प्रायश्चित्त दिया। गुरु की आज्ञा से दांत तोड़ने लगा तो उसे रोककर गुरुने कहा कि तेरा प्रायश्चित्त हो गया। अब तूं जिंदगीभर घेबर न खाना। तात्पर्य कि उसके भाव बदल कर लोलुपता से छुड़ाया। ___"देह की जितनी चिन्ता रखता है, उतनी नहीं परन्तु उससे अनंतगुनी चिंता आत्मा की रख।" (श्री.रा.प.-८४) ऐसा कहा है। पर इसके चित्त में देह ही बैठ गया है। देह के ही विचार आते हैं, वे कम हों, उससे खाली पड़े तभी तो आत्मा के विचार आ सकते हैं। विचार करनेका अवकाश हो तो ज्ञानी कुछ बताएगें। यह तो दूसरी बातोमें चिपक गया है। मनुष्यभव में पाँच इन्द्रियाँ, सत्पुरुष का योग और सत्साधन मिले हैं, तो कमी किसकी है? पुरुषार्थ की। प्रमाद छोड़े तो बहुत काम हो जाएँ। कृपालुदेव ने सारे दिन के विभाग किएँ हैं:- १ प्रहर भक्ति कर्तव्य, १ प्रहर धर्म कर्तव्य, १ प्रहर आहार प्रयोजन, १ प्रहर विद्या प्रयोजन, २ प्रहर निद्रा, २ प्रहर संसार प्रयोजन। 'पुष्पमाला' में हित हो वैसा कहा है। कृपालुदेव के वचन पढ़े तो सब हाथ में आएँ। पढ़े, विचारे, छूटने का लक्ष्य रखे तो काम हो। केवल श्रवण करने से जीव शिथिल हो जाता है। यह तो मैंने सुना है, उसे अलौकिक नहीं लगता। कोई नये जीव आए उसे लगता है कि यह तो कुछ अलग (अलौकिक) ही कहता है। ऐसा तो मैंने कभी नहीं सुना। पत्र, जो याद किएँ हों तो उनको विचारो; बोलते बोलते विचार जागे, इस तरह करो, तो आनंद आएँ। दुर्लभ वस्तुएँ हैं। ज्ञानी के वचनों का विचार आए तो दूसरी कमाई की अपेक्षा अधिक आनंद आएँ। कितने अनुभव का सार पत्रों में कह गएँ हैं। बहुत हितकारी है। अवकाश हो तो बीस दोहे, यम नियम, क्षमापना, बारह भावना या छः पद, कुछ भी विचारते रहना। जीव को बाह्य वृत्तियाँ रोकने में रस नहीं आता ।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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