SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधना पथ विश्वास से जहाज भी चलता है, ऐसा कहते हैं। ये वचन तो चिन्तामणि रत्न हैं। समकित होने का रास्ता बताते हैं। . (६९) बो.भा.-१ : पृ.-२०६ ... आत्मा का ख्याल रखना यह प्रभुश्रीजी कहते। सुनते सुनते जीव को शुद्ध भाव हो जाता है, अतः सत्संग करने को कहा है। ज्ञानी ने जो किया वह शुद्ध भाव। ज्ञानी ने कहा है, ऐसा भाव। उसका लक्ष्य रहे तो छूटे। अशुभ या शुभ नहीं। लक्ष्य शुद्ध का रखना। चाहे अशुभ आए, पर यह तो चले जाएगा। ज्ञानी ने शुद्ध भाव का अनुभव किया है। ज्ञानी का आश्रित हो, उसे यह लक्ष्य रहता है। समभाव आत्मा का घर है। । (७०) बो.भा.-१ : पृ.-२११ एक क्षण भी व्यर्थ न गँवाना। स्मरण-भक्ति करना। रोज सीखना, याद करना। जिसे ब्रह्मचर्य व्रत आया है उसे तो खूब सीखना, याद करना चाहिए। इसी में समय बिताएँ। प्रमाद न करें। गाड़ी में बैठे हों, तब दूसरों की बातें सुनने में समय न गवाएँ। स्मरण करें। दूसरा सब सांसारीक याद करने की अपेक्षा मंत्र स्मरण करें तो लाभ होगा। : अनादि काल से जीव को मोह भाव है। मनुष्यभव पहली बार मिला है, ऐसा नहीं, कई बार मिल चुका है। शास्त्र सीखे, दीक्षा ली, पर मोह मिटा नहीं। अपनी जो वस्तु नहीं, उसे अपनी मानना नहीं, तब मोह न होगा। आत्मा में सगे-संबंधी कोई नहीं। सब से छूटना है। प्रभुश्रीजी ने स्पष्ट कह दिया है कि गुरुगम आत्मा में है, बाहर खोजने से नहीं मिलता। वृद्ध, जवान, तवंगर आदि अन्य वस्तुओं दिखती है पर आत्मा नहीं दिखता। आत्मा ही गुरुगम है। पर्याय दृष्टि छोड़नी है, भाव की बात है। जितना गुड़ डालें, उतना मीठा हो। गुरु का बोध सुनकर, दर्शन करके जो करना था वह न किया तो बोध भी नहीं सुना। दर्शन भी नहीं किया। ज्ञानी से कितना लाभ होता है इसका पता जीव को नहीं। समझे तो उपकार लगता है।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy