SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२ । साधना पथ यथार्थ सामायिक करनी हो तो अच्छा स्थान चाहिए। पर अभ्यास हो जाने के बाद चाहे कहीं भी बैठे तो भी भाव स्थिर रहता है। सब का आधार मन पर है। अभ्यास से वृत्ति स्थिर रह सकती है। मनुष्यभव बहुत दुर्लभ मिला है। अब आत्म-कल्याण का लक्ष्य रखे कि मुझे कर्म छोड़कर जाना है। उसके लिए सत्संग करे, सत्शास्त्र पढ़े। वरना मन तो बंदर जैसा है, अन्य काम में लगकर आकाश-पाताल एक कर देता है। मन-वचन-काया सभी कर्म बंधन के कारण हैं। यह मन वश हो जाए, तो कर्मों का भुक्का निकल जाएँ। ज्ञानी की शरण रखी तो कल्याण, अन्यथा अनंत काल तक भटकना पड़ेगा। जीव को सच्ची समझ आई नहीं। यह ही मुझे करना है, ऐसा नहीं होता। मंत्र, मन को जीतने का साधन है। स्मरण में चित्त रहे तो कर्म बंध न हो। मन स्थिर रखना। मन चंचल है। इसे एकाग्र करने का मार्ग मंत्र है। आदत हो जाए तो मोक्ष ले जाए। ज्ञानी की आज्ञा में मन जोड़ दें तो मोक्ष मार्ग पर चल सकते हैं। . (६८) बो.भा.-१ : पृ.-२०६ क्या करने आया है, उसका पता नहीं। ज्ञानी की आज्ञा सिरोमान्य कर अध्यात्म-विचार करें तो शुष्कता न आएँ। सर्वत्र दुःख है, देव भी दुःखी हैं। कहीं भी जन्म लेने जैसा नहीं। सत्संग, सत्पुरुष का योग मिला है, पर जीव को अपूर्वता नहीं भाती, सामान्य सा लगता है। सत्संग की जिसने महत्ता समझी है, सत्संग की भावना है, उसे सत्संग न मिलता हो तो भी लाभ होता है। सत्समागम करने आया हो, पर कुछ सुनने को न मिले, तो भी सुनने की भावना है, अतः काम हो जाता है। मुमुक्षुः- पकड़ का क्या अर्थ? - पूज्यश्रीः- जो कुछ सुना हो, ज्ञानी से, वह छूट न जाए और उसमें रुचि रहे तो ही पकड़ होती है। जिसे आग्रह हो उसे, 'मैं मूढ़ हूँ' यह पता नहीं लगता। आत्मा है, ज्ञानी ने उसे प्रगट किया है, उसमें विश्वास रख।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy