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________________ साधना पथ मुमुक्षुः- जब तक स्वरूप न जाना हो, तब तक कैसे रहें? पूज्यश्रीः- ज्ञानीपुरुष की आज्ञा में रहना। वस्तु को जानने से दोष नहीं, पर राग-द्वेष करने से दोष है। जितने अंश में वीतरागता, उतने अंश में सम्यग्दर्शन है। जितनी वीतरागता, उतनी निर्विकल्पता है। मोक्ष सुखरूप है और मोक्ष का मार्ग भी सुखरूप है। मुमुक्षुः- लोगों को मोक्षमार्ग दुःख रूप क्यों लगता है? पूज्यश्रीः- मुमुक्षु दशा न आएँ तब तक दुःख लगता है। छोड़ना पड़ता है, उसका दुःख है। (५८) बो.भा.-१ : पृ.-१५८ जीव साधन करते हैं, पर निश्चयनय को भूल जाते हैं। इससे पुण्य बंध होता है, पर आत्मा का हित नहीं होता। यथार्थ श्रद्धा करके शुभ द्वारा शुद्ध में प्रवते तो मोक्ष हो। यह शुभ है, अतः पुण्य बंध होता है, इसलिए उसको छोड़ दें, ऐसा भी नहीं करना। साधन करना पर लक्ष्य निश्चय का रखना। एकान्त निश्चय या एकान्त व्यवहार को माने, दोनों मिथ्यात्वी हैं। पुण्य धर्म नहीं। धर्म तो शुभाशुभभाव का त्याग करके शुद्ध में रहे, तब होता है। शुद्धभाव की प्राप्ति करनी चाहिए। “वीत्यो काळ अनन्त ते, कर्म शुभाशुभ भाव; तेह शुभाशुभ छेदतां, ऊपजे मोक्ष स्वभाव।" ९० आ.सि. "निश्चय वाणी सांभळी, साधन तजवां नोय; निश्चय राखी लक्षमां, साधन करवां सोय।” १३१ आ.सि. शुद्ध को लक्ष्य में रखकर शुभ में प्रवृत्ति करे, तो शुद्धभाव प्राप्त हो। कृपालुदेव ने किसी क्रिया का निषेध नहीं किया, समझने की जरूरत है। “समज सार संसार में।" जो समझेगा, वह मोक्ष में जाएगा। कोई कुल धर्म को ही धर्म मान बैठे हैं ; अपने वाप-दादा करते थे, वही करना है। पर इस से कल्याण नहीं। शास्त्र पढ़ें, विचारे और जो अच्छा हो वह ग्रहण करें। स्वच्छंद में कल्याण नहीं। भगवान ने जो मूल मार्ग कहा है, वह पापी
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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