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साधना पथ
"हुँ कोण छ? क्याथी थयो? शुं स्वरूप छे मारूं खरूं?
कोना संबंधे वळगणां छे? राखुं के ए परिहरूं?" मुमुक्षुः- 'वळगणा' का अर्थ क्या है?
पूज्यश्रीः- घर, कुटुंब, मा-बाप, भाई, बहन - ये सब संबंध वळगणा है। जब अपने भाव फीके पड़ने लगे तब झट चेतकर सत्संग करने चले जाना। नेवला साँप के साथ लड़ने जाएँ तब साँप उसे डंख मारे कि तुरंत जाकर जड़ीबुट्टी सूंघ आएँ, जहर उतर जाएँ। फिर उससे लड़ने जाएँ, तब साँप डंख मारे कि फिर जाकर जड़ीबुट्टी सूंघे। इस तरह नेवला निर्विष होकर जहरीले साँप को मार डालता है। उसी तरह संसार रूपी साँप है, जीव रूपी नेवला है, सत्संग रूपी बूटी है। जब जीव को संसार रूपी साँप का जहर चढ़ता है तब सत्संग रूपी बूटी को सूंघ आएँ तो जहर उतर जाएँ। ऐसे करते संसार का जहर उतर जाएँ और मोक्ष हो जाएँ। अतः भाव बिगड़े कि तुरंत चेत जाओ।
(३४) बो.भा.-१ : पृ.-६३ महापुरुषों ने जो जो कहा है वह सब आत्मा के हित के लिए है। अतः मन में निश्चय रखना कि यह ही मेरे काम का है। ज्ञानी को जो रुचे, वह यदि अपने को भी रुचे तो समकित है। ज्ञानी को आत्मा अच्छा लगता है, अपने को भी यदि आत्मा अच्छा लगे तो समकित है। आत्मा के अलावा सर्व वस्तु विनाशी है। आत्मा इन्द्रियों से जाना नहीं जा सकता या किसी के हाथ में नहीं आ सकता। उपयोग उपयोग में एकाग्र होवे तो आत्मा हाथ में आता है। आत्मा उपयोग से पहचाना जा सकता है। "छे देहादिथी भिन्न आत्मा रे, उपयोगी सदा अविनाश।" उपयोग बिना आत्मा की पकड़ नहीं होती। महापुरुषों ने सब तरफ से उपयोग रोककर एक आत्मा में उपयोग को जोड़ा है।
___ अंदर से इच्छाओंको रोकना तप है। बड़ी भूल यह है कि जीव इच्छाएँ करता रहता है। आत्मा का सुख इच्छाएँ करने से चला जाता है।