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________________ (३४ साधना पथ सके, तो अधिक करने की भावना रखना। पर करना यही है। समझ चाहिए। “समझ पीछे सब सरल है।" वह समझ स्वयमेव अनन्त उपाय करने पर भी वदलना मुश्किल है। सद्गुरु के योग से जीव को दोष का पता लगता है। मुमुक्षु को अपने दोष दिखने से रोमांच उल्लसित होता है। अज्ञान जाने का कारण बोध है। "देह जीव एकरूपे भासे छे अज्ञान वड़े क्रियानी प्रवृत्ति पण तेथी तेम थाय छे, एवो जे अनादि एकरूपनो मिथ्यात्व भाव; ज्ञानीनां वचन बड़े दूर थई जाय छ।” ज्ञानी का योग होने के बाद देह छूट गई, ऐसी भावना होनी चाहिए। रुचि बढ़नी चाहिए। जीवको पैसे का स्वार्थ हो तब धूप में भी खड़ा रहता है। स्वरूप की रुचि नहीं हुई। (३२) बो.भा.-१ : पृ.-५४ जीव को जगत के जहर में से बचने के लिए सत्संग बहुत बड़ा साधन है। जीव को जब सत्संग न हो, तब सब भूल जाता है। यदि सत्संग हो, तो भक्ति आदि करने की भावना सहजता से होती है। उसे कुछ कहना नहीं पड़ता। ___ ज्यादा पुरुषार्थ की जरूरत है। चौथे आरे के मनुष्यों को कभी कोई सत्पुरुष मिलते और कोई वचन कह देते, तब वे उस वचन की पकड़ कर लेते। आज तो रोज़ सुनने पर भी कुछ असर नहीं। अतः बहुत पुरुषार्थ करना। (३३) बो.भा.-१ : पृ.-६१ मनुष्य भव पाकर आत्मा का हित करना है। सत्संग की जरूरत है। जीव निमित्ताधीन है। स्टेशन पर जाएँ तो वहाँ की बातें सुनने का भाव हो जाएगा, दवाखाना में जाएँ तो वहाँ वैसा भाव हो जाएगा, धर्म के स्थान पर धर्म का भाव होगा। अतः अच्छे निमित्त की जरूरत है। मनुष्यभव पाकर इतना जरुर विचार करेः
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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