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साधना पथ हमारे पास आना।” दूसरे दिन राजा और शास्त्री आएँ। सारी सभा एकत्रित हुई। बाद में आचार्य ने शास्त्री को और राजा को अलग अलग स्तम्भों से बाँध दिया और बोलेः- “शास्त्रीजी इस राजा को बंधन रहित करो।" शास्त्रीजीने कहाः- “महाराज! मैं तो खुद बँधा हुआ हूँ, राजा को कैसे छुड़ाउँ?" फिर राजा को कहाः- “आप शास्त्री को बंधन रहित करो।" राजाने कहाः- “यह कैसे हो सकता है?" तब आचार्य ने कहाः"दोनों समझ गए हो न?" राजाने कहाः- “खुले शब्दों में कहो तो मुझे पता लगे।" आचार्य ने कहाः- “स्वयं बँधा हुआ किस तरह दूसरे को छुड़ा सकता है? जो बंधन रहित होगा, वही छुड़ाएगा। वैसे ही मोक्ष के लिए जो मोक्ष तरफ चलने लगा है, जो संसार के परिग्रह से, रागद्वेष रूपी कषाय से छूट गए हैं, ऐसे महापुरुष मोक्ष जाने का रास्ता दिखा सकते हैं। और फिर यदि जीव उनके कथन अनुसार आज्ञापालन करे तो अवश्य मोक्ष हो, किन्तु बातें करने मात्र से न होगा।" .
(२०) बो.भा.-१ : पृ.३४ .. मुमुक्षुः- जीव ध्रुव है या उत्पन्न हुआ है और नाश होनेवाला है? .. पूज्यश्रीः- जीव का किसी भी काल में नाश नहीं होता. अतः ध्रुव है। जीव एक देह छोड़कर दूसरी देह में जाता है, इस अपेक्षा से वह उत्पन्न भी होता है और इस देह को छोड़ता है, इस अपेक्षा से नाश भी होता है। ____ जीव का स्वभाव आनन्दस्वरूप है, अनन्तसुखरूप है, तथापि इस बाह्य उपयोग से आत्मा तरफ दृष्टि नहीं होती। बाह्य रूप-रस-गंध-स्पर्श में उपयोग एकाग्र होने से आत्मा का सुख जानने मे नहीं आता। अतः सम्पूर्ण जगत से उपयोग खींचकर एक सत्पुरुष के प्रति लाना, क्योंकि सत्पुरुष आत्मस्वरूप में लीन है और अपना स्वरूप भी वैसा है। त्याग - वैराग्य हो तो जगत में से उपयोग सहजता से आत्मा तरफ झुकता है। अतः आत्मार्थ के लिए त्याग - वैराग्य दलाने की जरूरत है।