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साधना पथ
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आत्मा दिखता नहीं, तो वह है या नहीं ? यदि है तो देह ही आत्मा है या इन्द्रियाँ है वह आत्मा है ? या श्वास है वह आत्मा है ? सद्गुरु उत्तर देते हैं कि आत्मा देह से भिन्न है, प्रत्यक्ष अलग है। जैसे तलवार और म्यान एक दिखते हैं, पर दोनों प्रत्यक्ष अलग हैं; उसी तरह देह और आत्मा भी प्रत्यक्ष अपने अपने लक्षण से भिन्न है । देह का स्वभाव जड़ है, जानने-देखने का नहीं; और आत्मा का स्वभाव चैतन्य है । जानता भी है और देखता भी है। इन्द्रियों से आत्मा ग्रहण नहीं हो सकती । अतः इन्द्रियोंरूपी खिड़कियों से देखना बंध करके उपयोग को अन्दर लाए तो अनुभव में आ सकती है । ज्ञाता गुण आत्मा का है, वह गुण किसी भी काल में नाश नहीं होता । सदा जानता ही रहता है; अतः नित्य है । बो. भा. - १ : पृ. ३५
(२१)
देह, वह ही मैं हूँ । देह के संबंधी, वे मेरे संबंधी, देह रोगी हो तब मैं रोगी हूँ और जो देह की क्रिया, वह मेरी ही क्रिया है - इसी को ही ज्ञानियों ने मिथ्यात्व कहा है। अब जो समकित करना हो तो इससे उल्टा पाठ पढ़ा जाए कि मैं तो आत्मा हूँ, देह नहीं । देह के संबंधी, वे मेरे संबंधी नहीं । देह के रोग से मुझे रोग नहीं । देह सड़े, पड़े, या नाश हो, उससे मेरा नाश होनेवाला नहीं। ऐसा अभ्यास जब एकतान होकर समय समय पर करे, तब समकित हो। प्रबल पुरुषार्थ किए बिना और जगत से प्रेम छोड़े बिना यह अभ्यास टिकना मुश्किल है। ऐसा विवेक मात्र मानवदेह में ही होता है। अन्य किसी देह में ऐसी भेद बुद्धि करने का विवेक नहीं होता । अतः यह मनुष्य देह है तब तक विवेक रूपी भेद ज्ञान कर लेना चाहिए तो बाद में पछताना न पड़े।
(२२) बो. भा. - १ : पृ. ३५ भगवान महावीर जब दीक्षा लेकर मुनि बने, सर्व आरम्भ-परिग्रह का त्याग किया और साढ़े बारह वर्ष मौनपूर्वक, अनिद्रापूर्वक विचरण किया, उनका आहार अति अल्प था, दो-चार महिनोमें एक बार आहार लेते, इस लिए