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साधना पथ होगा। इसलिए आत्मा का उपकार न करने वाले पर पदाथों को निरर्थक देखने का बंध करने के लिए, अर्थात् इस आदत को भूल जाने के लिए वह निर्णय करता है। अभी ऐसा पुरुषार्थ करे तो नए कर्म बांधने में इन्द्रियाँ प्रेरक थी, वे रुक तो जाएँ, परन्तु अज्ञान दशा में अज्ञानी गुरु या असत्संग वासियों के जो जो उपदेश, शिक्षाएँ सुनकर प्रियरूप या अप्रियरूप में इकट्ठी कर रखी हों, वे मन में स्फुरित हो और उन में रमणता हो तो मन्त्रस्मरण में मन को टिकने न दें, रहने न दें। - यह सब किस लिए करते हो? किस लिए जिना है? वह तीसरी पँक्ति में कहते हैं; अब तो यही लक्ष्य रखना है कि जिन जिन साधनों से आत्महित हो वही करने हैं। आत्मा के लिए ही जिना है; यह लक्ष्य कभी भूलें नहीं, यह निर्णय करना है। यह सब होने पर ही मोक्ष मार्ग पर चढ़ा जा सकता है, यह समझ आने से मुमुक्षु अपने अब तक के जीवन को परिवर्तन कर डालने का निर्णय करता है और सच्चे पुरुष की शोभारूप, उस महापुरुष के कदम कदम चल कर मोक्ष मार्ग अंगीकार करता है।
संसार का पक्ष छोड़कर ज्ञानी के पक्ष में मृत्यु पर्यंत रहने का उसका निर्णय अन्तिम पंक्ति में बताया है। अब मैं पहले था वह नहीं, परन्तु परम कृपालुदेव की कृपा ने मुझे मोक्ष के रंग में रंग डाला, इसलिए मैं दूसरा. जन्म पाने की तरह पुराने भाव, पुरानी बातें, पुराने संस्कार छोड़कर, ज्ञानी के संमत किए भाव, उन की बातें, उनके संस्कार ग्रहण करुंगा। भ्रमरी जैसे इयळ (सुण्डी) को मिट्टी के घर में बन्द कर के डंख मार कर चली जाती है, बाद में इयळ भ्रमरी का स्मरण करते करते भ्रमरी बन जाती है। भुंगी इलिका ने चटकावे, ते भंगी जग जोवे रे।'उसी तरह परमकृपालुदेव द्वारा प्रदत्त मन्त्र का स्मरण करते करते परम कृपालुदेवकी दशा पाने के लिए अब तो जीना है जी। परमकृपालुदेव का योग बल और इस जीव का पुरुषार्थ, दोनों मिलने से मोक्षमार्ग में आगे बढ़ा जा सकता है, वह बताने के लिए यह रहस्यपूर्ण दृष्टांत बताया गया है।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः