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________________ - साधना पथ जीव सत्पुरुष के पास आएँ तो एकदम परिवर्तन होता है। पर वह भाव टिका रहे तो मोक्ष हो जाएँ। इस काल में आराधक जीव कम हैं। अतः संस्कार पड़ने में देरी लगती है। इस लोक की अल्प भी सुखेच्छा न रखना। परिपूर्ण सुखी स्वयं को मानना। आत्म स्वरूप में कोई कमी नहीं। त्याग में सुख है, ग्रहण में नहीं। जगत का कुछ नहीं चाहिए। मुमुक्षुः- नींद बहुत आती है। पूज्यश्रीः- संसार का भय लगें तो न आएँ। जैसे कोई फिसलने के स्थान पर खड़ा हो और पवन चालू हो तो कितना सावधान रहता है कि कहीं गिर न जाँऊ। वैसे ही यह जीव फिसलने के स्थान पर खड़ा है। गिरे तो फिर ठिकाना नहीं। गढ़े में भी गिर सकता है। रात को शांति का समय है। उस में विचार करें तो कितनी शान्ति मिले? मुर्दे की तरह पड़े नहीं रहना। बिछाने को कठिन रखें तो नींद कम आएँ, जागृति रहे। सम्यक्त्वी को हर्ष-शोक की वृत्ति उठे तो तुरन्त दबा देने वाली जागृति उस की होती है। ज्ञानी के वचन कंठस्थ करता है, पर यही मुझे करना है, यह दृढ़ निश्चय करके आचरण में लाएँ तो काम हो। कृपालुदेव सारा दिन काम करते। इतनी सारी उपाधि होने पर भी समाधि रखते। आत्मा कोई बाहर नहीं गया। जिसे समझ नहीं, उसे मुश्किल लगता है। अनुभव, लक्ष्य, प्रतीति ये तीन वस्तु कहीं हैं। अनुभव में न हो, लक्ष्य में न हो, तथापि सम्यक्त्वी को प्रतीति रहती है। मिथ्यात्व के उदय से जो कर्म बँधते थे, वे सम्यक्त्वी को अब नहीं बँधते। ज्यादा परेशानी तो मिथ्यात्व कराता है। यह मिटे तो समाधि हो। बहुत समझने की वस्तु है। जब से सच्ची समझ आएँ तब से सच्चा त्याग अन्दर से प्रगट होता है। चाहे कितनी भी सम्भाल लो पर देह कहाँ टिकने वाली है? जिसकी जितनी किंमत हो उससे ज्यादा किंमत करनी नहीं। जो भी करना हो, आत्मार्थ के लिए करना। ममत्व न हो तो खेद नहीं होता। आत्मा सिवा सब नाशवंत हैं; अतः पहले से ही सब ममत्व छोड़कर सावधान रहना। जगत के पदार्थों में तीतली की तरह जीव जा कर गीरता है, पर महात्मा के प्रति मोह ही
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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