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साधना पथ नहीं आया! तेरा बुरा करें, उसका भला करो। यही वस्तुतः विनय है। अपनी निन्दा करने वाले के प्रति भी दासत्व भाव रखना। श्री.रा.उपदेशछाया-६ (१५०) . बो.भा.-२पृष्ठ-३८१
प्रश्नः- पाँचों इन्द्रियाँ वश कैसे हों?
उत्तरः- वस्तुओं के प्रति तुच्छ भाव लाने से पाँच इन्द्रिया वश होवें। पहले जिह्वा इन्द्रिय वश करना। बाद में सब इन्द्रियाँ सहज में वश हो जाती हैं। इसे आहार कम देना। रस वाला आहार न देना। यह वस्तु अच्छी है, खा लूँ, ऐसा न करना। बहुत अच्छी शिक्षा है। इन्द्रियों को वश करने का दृढ़ निश्चय अभी किया नहीं। वैराग्य हो, तो बने। इन्द्रियों को उन्मत्त करने वाला आहार है। इन्द्रियों को बल मिले तो शैतानी किए बिना रहेगी नहीं। इन्द्रियों से मन को असर होता है। उससे कर्म बंध होता है। वस्तु का विचार करें तो वैराग्य सहज हो। देह का स्वरूप अशुचिमय है। ऊपर से चमड़ी अच्छी देख कर जीव मोह करता है। वस्तु का गहन विचार नहीं करता। ऊपर ऊपर से विचारें, यह तो जीव की भूल है। शरीर का स्वरूप अंदर से कैसा है? यह विचार करें तो इन्द्रियों से जीव वापिस हटे, इसके लिए ज्ञानी का बोध है। बोध से यथार्थ विचार होता है। शरीर अपवित्र नहीं लगता, इस के लिए अशुचि भावना विचार के मोह कम करना। आत्मा के बिना तो शरीर मुर्दा है।
पूज्यश्रीः- पाँच इन्द्रियो द्वारा जीव के कार्य से कर्म बंध है। पाँच इन्द्रिया वश कैसे हो, यह पुछने की इच्छा होती है?
मुमुक्षुः- ना
पूज्यश्री :-पाँचो इन्द्रियाँ मुझे कर्म बंधाती हैं, दुःख देती हैं। इनके वश होता हूँ यह मेरा दोष है। ऐसा जिसे लगे वह सद्गुरु से पूछता है, उत्तर मिले तो उसे शान्ति होती है। ‘आत्मा से सब हीन।' आत्मा की महत्ता लगे तो सब पदार्थ तुच्छ लगें। फिर इन्द्रियाँ इसे दुःख नहीं देती। एक-एक इन्द्रिय के वश हो कर जीव प्राण गँवाता है। सब वस्तुओं पर तुच्छ भाव आएँ तो इन्द्रियाँ वश हों। यह शरीर तुच्छ वस्तु है। सब क्षणिक