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________________ १४८ साधना पथ चौथा पद आत्मा भोक्ता है। सर्व पदार्थों में अर्थक्रिया होती है, उसका फल भी आता है परन्तु उस फल से सुख-दुःख का अनुभव करने की शक्ति एक आत्मा में ही है, इसलिए वह भोक्ता है। विष, अमृत, अग्नि, हिम आदि में जो विशिष्ट गुण हैं, उनका संबंध होने से आत्मा उन गुणों को अनुभव करनेरूप फल प्राप्त करती है। लोहचुम्बक से जैसे सूई आकर्षित होती है, वैसे तीव्र या मंद कषाय सहित आत्मा परिणमन करें तो वैसा कर्म बंध होता है, और कषाय रहितता से परिणमन करें तो कर्म बंध नहीं होता। जीव यदि कर्म बांधे तो संसार के सुख-दुःख रूप फल को पाता है और कर्म न बांधे तो बंध रहित आत्मा का सहज सुख भोगनेरूप मोक्ष प्राप्त होता है। परमार्थ से स्वभावपरिणति से आत्मा निज स्वरूप का भोक्ता है, और अनुपचरित व्यवहार से वह द्रव्य कर्म के फल का भोक्ता है। पाँचवा पदः- 'मोक्ष पद है।' जिस अनुपचरित व्यवहार से जीव के कर्म के कर्तृत्व का निरूपण किया, कर्तृत्व होने से भोक्तृत्वका निरूपण किया, उस कर्म का टलने का स्वभाव है, क्योंकि प्रत्यक्ष कषायादि की तीव्रता हो परन्तु उसके अनभ्यास से, उसके अपरिचय से, उसे उपशम करने से, उसकी मंदता दिखती है। वह क्षीण होने योग्य दिखता है, क्षीण हो सकता है। वह बंध भाव क्षीण हो सकने योग्य होने से उस से रहित जो शुद्ध आत्म-स्वभावख्य मोक्ष पद है। पाँचवा पद मोक्ष पद है। छःपद में जो कर्तृत्व कहा है वह सामान्यतः कर्म के कर्तृत्व की अपेक्षा से कहा है। अपने स्वरूप में परिणमन करना वहाँ कर्तृत्व कथन मात्र है। आत्मा का विभाव परिणमन से मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, योग से - अथवा राग, द्वेषरूप कषाय से - जीव कर्म बांधता है और बद्ध कर्म काल पकने से रस दे तब सुख-दुःख का वेदन हो, उससे जीव को कर्म का कर्ता और भोक्ता कहा है। इस तरह अनादि काल से वह कर्म का व्यवसायी है। सद्गुरु कहते हैं कि वह कर्म टाला जा सकता है, इस का विचार करें तो स्पष्ट प्रमाण है। कषाय के कारण बंध पड़ता है। निमित्त मिलते क्रोध, काम, लोभ आदि करने का खूब
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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