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________________ १४५ साधना पथ उन में से यहाँ पुदगल के दृष्टान्त के लिए घट और पट कहे हैं। घड़ा या वस्त्र अजीव है पर उस को जाननेवाला - देखनेवाला दूसरा पदार्थ भी है, वह जीव है। जैसे घड़े पर कपड़ा लपेटा हो, उसको देखनेवाला आत्मा अलग है, वैसे घट अर्थात् देह, पट अर्थात् वस्त्र सहित है उसमें आत्मा रहा है। इस तरह देह अथवा पुद्गल और आत्मा दो भिन्न पदार्थ हैं, यह बताया। देह, वस्त्र आदि सब जड़ पदार्थ उनके गुण रूप, रस, गंध, स्पर्श आदि से जान सकते हैं। गुणों के बिना गुणी मालूम नहीं होता। उसी तरह आत्मा भी उसके गुणों से मालूम होती है। जो घट-पटादि को जानता है और अपने आत्मस्वरूप को भी अनुभव से जानता है, वह आत्मा है या चैतन्यसत्ता, अस्तित्व, जीव है ऐसा कहा जाता है। मैं हूँ यह पता लगता है वह जीवत्व गुण जिसका है वह पदार्थ - आत्मा है, इस तरह प्रत्येक रीति से प्रगट अनुभव में आता है। ज्ञान-जानना, दर्शन-देखना, सुख-दुःख का वेदन आदि गुण वाला चेतनरूप पदार्थ, आत्मा है। स्वप्रकाशकता से अनुभव किया जा सकता है। परप्रकाशता से अनुमान किया जा सकता है। अतः स्व-परप्रकाशक गुण प्रत्यक्ष है, वह आत्मा का लक्षण है। दूसरा पदः- 'आत्मा नित्य है।' घट-पट आदि पदार्थ अमुक कालवर्ती है। आत्मा त्रिकालवर्ती है। घट-पटादि संयोगजन्य पदार्थ हैं। आत्मा स्वाभाविक पदार्थ है, क्योंकि उसकी उत्पत्ति के लिए कोई भी संयोग अनुभव योग्य नहीं होते। किसी भी संयोगी द्रव्य से चेतनसत्ता प्रगट होने योग्य नहीं है अतः अनुत्पन्न है। असंयोगी होने से अविनाशी है। क्योंकि जिसकी किसी संयोग से उत्पत्ति न हो, उसका किसी में लय भी नहीं होता। - दूसरा पद आत्मा नित्य है। घट-पट आदि जड़ पुद्गल परमाणुओं के संयोग से बनते हैं। वे अलग हो जाएँ तो पदार्थ नाश हुआ माना जाता है। आत्मा कोई ऐसे पुद्गल मिलने से या आकाशादि अन्य द्रव्य के मिलने से उत्पन्न नहीं हुई, वह तो स्वाभाविक पदार्थ है। जैसे रसायणशास्त्र में
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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