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________________ १४३ साधना पथ वाले का संग भी सत्संग है और अपने से नीची दशा वाले जीवों का संग भी जो जीव ज्ञानी के वचन पढ़ते हों, विचारते हों, वे भी हितकारी हैं। जहाँ संसार की बातें हों, वह कुसंग है। सब से बड़ा कुसंग मिथ्याग्रही साधु-साध्वियों का है। कुटुम्ब के काम ऐसे हैं कि जो (आत्म कल्याण) करना है, वह रह जाता है। इससे वह भी (कुटुम्बकाज) एक प्रकार का कुसंग है। 'भालसौ भुवनवास, कालसौ कुटंबकाज' (श्री.रा.प७८१) ऐसी दशा महापुरुष की होती है। (सिनेमा - नाटक भी कुसंग है) इसकी जो आदत हो जाय तब आत्मा का विस्मरण हो जाएँ। क्रोधादि कुसंग है। इन सब कुसंगों से बचने का हैं और निरंतर भावना सत्संग की करनी है। मेरा कल्याण सत्संग से होगा, यह भावना रखना। इस जीव को अपनी मान्यता छोड़कर बारम्बार सत्संग हो तो चित्त निर्मल बने और आत्मा निर्मल बने। फिर देह छूट भी जाएँ तो सत्संग के संस्कार साथ लेकर जाएँ। पक्का रंग नहीं उतरता। श्री.रा.प.-४९३ (१२४) बो.भा.-२ : पृ.-१५४ जो दिखता है, वह सब नाशवन्त है। आत्मा को जानने से कोटि कर्म नाश होत हैं। छः पद में सम्यग्दर्शन रहा हुआ है। छः पद की श्रद्धा हो, तो मोक्ष हो जाएँ। सम्यग्दर्शन मोक्ष की नींव है। नींव तूटे तो मकान तूटे। समकित कहता है, मुझे विचार कर के ग्रहण करना। मोक्ष में न जाना हो, तो यदि मुझे ग्रहण कर लिया तो मैं जवरजस्ती से मोक्ष में ले जाऊँगा। समकित का ऐसा बल है। जो नहीं दिखता उस आत्मा को देखना है। जीव के अनन्त दोष है, किन्तु घबराना नहीं। दोष टालने का लक्ष्य रखना। भगवान के गुणों में प्रीति ही भक्ति है। कृपालुदेव की भक्ति करते हुए, उन के गुण वारंवार याद आते हैं। उनका ज्ञान कैसा था? स्मृति कैसी थी? भूल में पड़े जगत को आत्मा का ज्ञान बताया है। ये अपूर्व गुण विचारें, याद करें तो विशेष उपकार होता है।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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