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________________ साधना पथ २. रमताः- आत्मा का स्वभाव रमणीय है। यह आत्मा न हो तो शरीर दुर्गंधी वाला बने। मुर्दे को कस्तूरी से भरें तो भी दुर्गंध आएँ। वृक्ष को काटनेके बाद उसमें से जब जीव निकल जाता है, तब सुंदरता चली जाती है। पुद्गल सुंदर दिखता है, वह सारी सुंदरता, आत्मा के कारण ही है। आत्मा बिना सुंदर कहे कौन? अंदर आत्मा है, वह सब रचना करती है। सुंदर वस्तु, रमणीय वस्तु आत्मा है। जैसा समता गुण आत्मा का है वैसा रमता गुण भी जीव का है। आत्मा के कारण सब रमणीय दिखता है। यह न हो तो फिर कौन कहे कि यह सुंदर है? ३. ऊरधताः- स्वयं न हो तो कुछ पता नहीं चलता। पहले स्वयं हो तभी दूसरा पता चलता है। सर्व में ऊपर रहने का जिसका लक्षण है, वह ऊरधता गुण है। कोई भी वस्तुको जानने से पहले अपना जीव है, उसके बिना कुछ भी जान नहीं शकते और जड़ वस्तु कुछ नहीं जानती। ऊरधता धर्म आत्मा का है। ग्रहण करना, त्यागना या आओ या जाओ, ऐसी उदासीनता का कारण आत्मा ही है। आत्मा की मदद बिना कुछ होता नहीं। पहले आत्मा हो तो सब जानना, करना आदि होता है। यह आत्मा का उर्ध्वता गुण है। ४. ज्ञायकताः- लगता है। जाने वह जीव, न जाने वह जड़। जाननेवाले को जाने तभी आत्मा का अनुभव हो। जिसमें ज्ञायकता है वह जीव है। कोई जानने का बंद करे कि मुझे कुछ भी नहीं जानना, परन्तु जाने बिना रहा ही न जाएगा। आत्मा का अनुभव करना हो तो ज्ञानोपयोग रखना। जाननेवाला ही मेरा स्वरूप है। जीव का अनुभव करने के लिए इस ज्ञायकता गुण का विचार करने की जरूरत है। "जे दृष्टा छे दृष्टिनो, जे जाणे छे रूप; अबाध्य अनुभव जे रहे, ते छे जीव स्वरूप।" ५१ आ.सि. सब को बाद करते करते जो बचे यानी शेष रहे वह ज्ञायकता गुण है। ज्ञान गुण अन्य किसी मेनही देता। अतः यह जीव का मुख्य लक्षण है। अत्यंत अनुभव का कारण ज्ञायकता
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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