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साधना पथ
बो. भा. - १
(१)
सत्य बोलने की आदत डालना । सत्य बोलनेवाले को बिना वजह दिन-भर बोलना नहीं, मौन धारण करना । ( चारों प्रकार की ) विकथा का त्याग करना या वैसी बातों में अनुमोदन नहीं देना । वैसा करने से झूठ बोलने का प्रसंग आ सकता है । सन्तोष, बहुत उत्तम है । सन्तोषी व्यक्ति सत्य बोल सकता है । सन्तोषी व्यक्ति की महत्ता का पार नहीं हैं।
: पृ. १०
(२)
बो. भा. - १ : पृ. ११
जब आत्मा जागृत हो जाएँ और अपनी आत्मा का ही कल्याण करने का अन्तर में निश्चय हो जाएँ, तब बलवीर्य स्फुरायमान होता है, कर्म का जोर नहीं चलता, तभी ज्ञानीपुरुषों का कथन समज़ में आता है। अन्यथा, एक कान से सुना और दूसरे से निकल जाता है। अतः रुचि जागृत करने की प्रथम जरूरत है। उसके बाद ही ज्ञानीपुरुष आगे बढ़ने के लिए जो उपाय बताएँ वह प्रतीत में आएँ, तो आत्मा बलवान होकर आगे ही आगे बढ़ती जाती है। फिर प्रमाद का भी कोई जोर नहीं चलता । परमकृपालुदेव सोते सोते भी कुछ न कुछ बोलते रहते थे। शरीर को तो जब न चले, तब ही आराम देना। शेष समय पुरुषार्थ करते रहना । नींद न आ रही हो, तब जबरदस्ती लाने की कोशिश न करते हुए विवेक करें कि अच्छा हुआ, पुरुषार्थ हो सकेगा। देह हो, तब तक उसकी अंतिम पल भी उपयोग में लेनी हो, तो ले सकते हैं। स्वस्थ शरीर हो तव स्मरण का इतना अभ्यास कर लेना, कि मृत्युशय्या पर भी काम आ सके। खराब कर्मों का फल भी आकर खड़ा रहता है, तो यह तो सत्य वस्तु है, तो क्यों न उपस्थित हो सके ? यह जीव इतना मोहाधीन है उसे समय की जरा भी