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साधना पथ वाचकों को निवेदन पाठन्! में आज तुम्हारे हस्तकमल में हूं। मुझे यत्नापूर्वक पढ़ना। मेरे कहे तत्त्व को हृदय में धारण करना। में जो जो बात कहूं, वह विवेक से विचारना। ऐसा करोगे तो तुम ज्ञान, ध्यान, नीति, विवेक, सद्गुण ओर आत्मशान्ति प्राप्त कर सकोगे।
आप जानते होगें कि कई अज्ञानी मनुष्य नहीं पढ़ने योग्य पुस्तकें पढ़ कर अपना समय खो देते हैं और उल्टे रास्ते चढ़ जाते हैं। इस लोक में अपकीर्ति पाते हैं, पर लोक में नीच गति में जाते हैं।
आपने जो पुस्तकें पढ़ी हैं, और अभी जो पढ़ रहे हो, वे मात्र संसार की हैं; परंतु यह पुस्तक तो भव परभव दोनों में आपका हित करेगी। भगवान के कहे वचनों का इसमें थोड़ा उपदेश हैं।
इस पुस्तक की किसी तरह भी आशातना करना नहीं। इसे फाडना नहीं, दाग लगाना नहीं या बिगाड़ना नहीं। विचक्षण पुरुषोंने कहा है कि विवेक से सब काम लेना। विवेक में धर्म हैं।
आपको एक यह भी निवेदन है कि जिन्हे पढ़ना नहीं आता, उनकी इच्छा हो तो उन्हे यह पुस्तक पढ़कर सुनाना।
आपको कोई बात समझ न आएँ तो ज्ञानी पुरुष से समझ लेना। समझने में आलस या मन में शंका नहीं करना। ___आप के आत्मा का इससे हित हो, आपको ज्ञान, शांति और आनंद मिले, आप परोपकारी, दयालु, क्षमावान, विवेकी ओर बुद्धिशाली बनो, ऐसी शुभकामना अर्हत् भगवान से कर के यह पाठ पूरा करता हूँ।
- श्रीमद् राजचंद्र
('मोक्षमाला')
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