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________________ १२६ साधना पथ की आराधना योग्य है। जो जो मोक्ष गए हैं, उन सभी ने ऐसा किया है। जिसे आत्मा का काम करना है, उसे उस के लक्ष्य के बिना काम नहीं होगा। कृपालुदेव ने आत्मस्वरूप प्रगट किया है उनकी आराधना करे। निरन्तर आत्मा के आराधन की इच्छावाले को भी कर्म बीच में आते है, तब उन कर्मों को कर्मरूप में देखे तो उसे बंध नहीं होता। ज्ञानी ने स्मरण आदि की शिक्षा दी हो तो उसमें चित्त रखें तो कर्म आ आकर चले जाते हैं। न किया हुआ भोगना नहीं पड़ता। किसी के शाप से किसी का बुरा नहीं होता। पर बुरा होनेवाला हो, तभी होता है। किसी के वचन से कार्य सिद्धि हो, तो यह भी पुण्य हो तभी होगी। ऐसी मान्यता है की उस के कहने पर हुआ, जैसे गौतमस्वामी के पास ऐसी लब्धि थी कि जिसे भी दीक्षा दे, उसे केवलज्ञान हो ही जाएँ, पर केवलज्ञान होनेवाला हो वह ही इनके हाथ में आता, ऐसा समझना। एकेन्द्रिय भी मनुष्य बन कर मोक्ष में जाते हैं। यह भी किसी जीव की अपेक्षा से समझना है। शेष तो मनुष्यत्व मिलना ही बहुत मुश्किल है। मोक्ष की सामग्री मिलना भी दुर्लभ है। अभी अपने को सामग्री मिली है; तो उसकी किंमत नहीं है। मनुष्यभव, उत्तम कुल, सत्पुरुष का योग, उनकी आज्ञा और उस आज्ञा का पालन करने की शक्ति मिली है; वह पुनः मिलना दुर्लभ है। एक एक क्षण कंजूस की तरह प्रयोग में लेना। कर्म सिद्धान्त अटल है बदलता नहीं। दो और दो चार जैसा है। श्री.रा.प.-४३६ (११७) बो.भा.-२ : पृ.-११६ कृपालुदेव कहते हैं जगत आत्मा आत्मा कहता है, पर हम आत्मारूप होकर आपको कहते हैं। 'समता, रमता, ऊरधता, ज्ञायकता, सुखभास; वेदकता, चैतन्यता, ए सब जीव विलास।' १. समताः- आत्मा के असंख्यात प्रदेश हैं, वे जैसे हैं, वैसे ही रहते हैं। उनमें एक भी कम या ज्यादा नहीं होता, समता गुण ऐसा है। जीव समता लक्षणवाला है। जीव को आत्मा की पहचान कराने के लिए लक्षण
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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