SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधना पथ है, किसीको दो आवाज लगाएँ तब जागता है। कोई तीन आवाज से और कोई ज्यादा आवाजों से जागता है, पर इसे जगाना है। एक वाक्य से जागे तो अनंत आगम पढ़ गया। सत्पुरुष ने एक शब्द दिया हो, उसमें सब आगम आ जाते हैं। 'सहजात्मस्वरूप परमगुरु' इतना कहने में आत्मा को बताने वाला शब्द आया। अतः सभी शास्त्र आ गए। सहजात्मस्वरूपी शुद्ध आत्मा बना, वह परमगुरु है। सत्पुरुष का एक-एक वचन आत्मा से निकलता है। उसमें आत्मा तक ले जाने का सामर्थ्य है। और आत्मा में तो केवलज्ञान है। केवलज्ञान होने के कारण रूप, ज्ञानी के सब वचन हैं। आगम अर्थात् शास्त्र, आगम अर्थात् आना, भगवान के पास से जो ज्ञान आया वह आगम कहलाया। मुमुक्षुओं के लिए कल्याणकारी ये पाँच वाक्य हैं। सर्व ज्ञानीपुरुषों की साक्षी से ये लिखे हैं। मायिकसुख, इन्द्रियसुख, संसारसुख - सब छूटे तब मोक्ष हो। मोक्ष जाने की इच्छा है तो मायिक सुख छोड़ना पड़ेगा। उसकी इच्छाएँ छोड़नी पड़ेगी। अतः आज से ही इच्छाएँ कम करने का अभ्यास करो। मायिक वासना स्वयमेव नहीं छूटती। सहायक की जरूरत है। इसके लिए सर्व प्रथम सद्गुरु की खोज करनी चाहिए। फिर मन-वचन-काया से अर्पणता करना। ममत्व निकाल देना। जितनी शक्ति है वह सब आज्ञा की आराधना में उपयोग में लें और पीछे न हटें तो मायिक वासना जाएँ। अनंत काल से परिभ्रमण है। इसमें विद्या बहुत बार पढ़ीं, जिनदीक्षाएँ ली, आचार्य भी बना परंतु सत् न मिला। सत् को पाने के लिए ज्ञानी के कथन को प्रथम सुनना चाहिए, फिर उसकी श्रद्धा करनी चाहिए। हम अपने भाव से ही बंधते हैं, अपने भाव से ही छूटते हैं। अंतरंग क्रिया, सद्गुरु बिना समझी नहीं जा सकती। अतः सद्गुरु की भक्ति, शरण लेनी चाहिए। ज्ञान चाहिए तो ज्ञानी के पास जाना चाहिए। जहाँ मोक्षमार्ग है, वहाँ जाएँ तो मोक्षमार्ग प्राप्त हो। अनादि काल से जीव परिभ्रमण कर रहे हैं, पर आत्मा न मिली।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy