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साधना पथ
सत्पुरुष की पहचान होना कठिन है। पहचान बाद यदि एक भी वचन मरते तक पकड़ रखें तो मोक्ष हो जाएँ। सम्यक्दर्शन-ज्ञान-चारित्र यह मोक्षमार्ग है। और यह आत्मा ही है। बाहर खोजने से न मिले। दो अक्षर में मार्ग रहा है। वे दो अक्षर कौन से ? प. पू. प्रभुश्रीजीने कहा था 'ज्ञान और ज्ञानी ।'
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श्री. रा.प. - १९८
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बो. भा. -२ : पृ. ४४
पूज्य श्री :- सत्पुरुष का योग मिला हो तो योग्यता बढ़ानी चाहिए । जितनी योग्यता हो, उतना ग्रहण कर सके, अतः योग्यता बढ़ानी चाहिए। 'मैं देह हूँ,' ऐसा जब तक रहेगा, तब तक विषय कषाय लिपटे रहेंगें। मंद कषाय हुए बिना संसारी भाव कम नहीं होते । सत्संग भी सफल नहीं हो सकता। अतः विषय-कषाय का भाव छोड़कर सत्संग करना चाहिए ।
मोक्ष की ही ईच्छा वाला मुमुक्षु हो तो सत्संग में अपना दिल खोलता है। सत्संग में अपने स्वयं के दोष दिखते हैं, और दूसरो के गुण दिखते हैं। सत्संग में ज्ञानीपुरुषों के चरित्रों का, वचनों का विचार हो तो सत्संग सफल है। सत्पुरुष सजीवन है। अन्य सब मृत सम हैं। ज्ञानीपुरुष के पास जाएँ तो सब कल्पनाएँ खिसक जाएँ । ज्ञानी बिना अपनी कल्पनाएँ आगे आती हैं। कल्पनाओं में ही घिरे रहते हैं । ज्ञानी का अपने ऊपर अनंत उपकार है । यह भूल जाएँ तो सत्संग भी व्यर्थ है । अभी जो भी सुन रहे हैं, विचार रहे हैं, समझ रहे हैं, वह सब ज्ञानी का ही उपकार है।
प्रभु के बोध में आया था कि साधु बना हो, द्रव्य चारित्र पाल रहा हो, दूसरों को उपदेश देता हो, पर मन में कुछ और हो और ऊपर कुछ और हो । दूसरों को अच्छा दिखे, वह करता हो । साधुत्व नहीं हो और साधुता बताए तो माया शल्य है। ठेर ठेर संप्रदाय हैं, शास्त्र हैं, पर सत् नहीं है।
जम्बूद्वीप, धातकी खण्ड की बातें करें तो अपने को वे बहुत हितकारी नहीं, पर अपने को क्या करना है ? यह सोचें तो ज्यादा हितकारी हैं।