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________________ साधना पथ सिर पर भार हो तो डूब जाएँ। आत्मा में से वृत्ति उठकर पुद्गल में जाएँ, तो फिर आत्मा में रहा न जाएँ। पुद्गल का परिचय हो गया है। उसके बिना चलेगा ही नहीं, ऐसा हो गया है। कृपालुदेव को किसी ने पूछा कि आप का शरीर क्यों सूख गया? उन्हों ने कहा, 'हमारे दो बाग हैं। एक में पानी ज्यादा गया, तो दूसरा बाग सूख गया।' भगवान के गुणों का विचार करो। उनका भजन स्मरण करो। सत्पुरुष का स्मरण, भक्ति, स्तुति करो। ज्ञानी के पास से जो साधन मिला उस में वृत्ति रखे तो ज्ञानी बन जाएँ। श्री.रा.प.-११२ (९८) बो.भा.-२ : पृ.-२१ धर्म करने की इच्छा हो तब जीव ऊपर ऊपर से धर्म करता है, पर धर्म तो बहुत गहन है। अतः बहुत सूक्ष्म रीति से वृत्तियों को देखकर धर्म करना है। सत्य तो सत्य ही है। सूक्ष्म दृष्टि बिना, आत्मा की बात समझ नहीं आती। 'महावीर के बोध का पात्र कौन?' 'सदैव सूक्ष्म बोध का अभिलाषी।' ____ अपने से न होता हो तो कहना कि सत्य तो यही है किन्तु मेरे से नहीं होता। परन्तु यह कभी भी न कहें कि मैं कर रहा हूँ वह ही सत्य है, वही भगवान ने कहा है। भगवान के कहे मार्ग पर चलने की वृत्ति हो परन्तु कर्म के बल के कारण न चल सके, तथापि मुझे चलना तो है भगवान के बताये मार्ग में ही। इस तरह उसी दशा में ही स्थिर बनो। जब जीव अपनी होश में आए तो पता लगता है कि मैं क्या कर रहा हूँ ? आत्मा को कर्म बंधवा रहा हूँ। इस तरह पीछे हटो। व्रत में अतिचार लगे तो छेदोपस्थापनीय (प्रतिक्रमण) करते हैं, उसी तरह पीछे हटें। जगत में अपना कोई बिगाड़ता नहीं। अपने कर्म से, अपने भावों से ही बिगड़ता हैं। श्री.रा.प.-१६६ (९९) . बो.भा.-२ : पृ.३४ - ज्ञानी के एक वचन को भी आराधे तो सर्व शास्त्रों का सार प्राप्त कर सकते हैं। कोई व्यक्ति सो रहा है, उसे एक आवाज दें तो जाग जाता
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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