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साधना पथ अर्थात् मन का दूसरें में खिंच जाना और अज्ञान अर्थात् अपनी होश नहीं; इन दोषों में जीव अनादि से खिंचा है। ज्ञानी के वचनों का यथार्थ विचार हो तो अज्ञान जाएँ। अज्ञान अंधेरे समान है। ज्ञान दीपक आएँ तो अज्ञान अन्धकार जाएँ। अज्ञान का बल बहुत है। अज्ञान दूर करने के लिए मल
और विक्षेप पहले टालना पड़ें। इसके लिए सत्संग उत्तम साधन है। मल (कषाय) मिटाने का पहला साधन है सरलता, जीव सरल स्वभावी हो तो ज्ञानी के वचन न समझा हो, तो मैं नहीं समझा, ऐसा मानता है। दूसरा, क्रोध को दूर करने के लिए क्षमा गुण है, क्षमा अर्थात् सहन करना। मान हो तो जीव अपने दोष देखता नहीं। मान छोड़ने के लिए विनय करो। लोभ को दूर करने के लिए आरंभ-परिग्रह दूर करो। ज्यों ज्यों उपाधि कम करे, त्यों त्यों समाधि सुलभ बनती है। भटकने वाला मन है, वह ज्ञानी की भक्ति में जुड़े तो सारे जगत का त्याग हो जाएँ और विक्षेप मिटता है। दोषों को कहकर, दूर करने का उपाय भी बताया। अब जितनी जरूरत हो, उतना काम करो। ज्ञानी के प्रति अत्यंत भक्ति हुई हो, तो चित्त उसीमें रहता है।
वियोग में ज्ञानी की दशा लक्ष्य में आई हो तो उस पर विचार करना, ज्ञानी की चेष्टाएँ याद करनी। हाथ या आँख की चेष्टा से ज्ञानी ने जो कहा हो, वह याद करना। उनके वचन याद करके विचारना या पढ़कर विचार करना, समझना। सत्पुरुष का जब योग न हो, प्रवृत्ति का योग हो तब अधिक सावधानी रखना। सत्पुरुष के वियोग में बहुत सावधानी रखना। ज्ञानी के योग में जो सुना हो, वह भूल न जाना। घर, ज्ञाति, या अन्य का काम हो तो उसमें बड़े बनकर आगे न रहना। व्यवहार करना पड़े तो मुश्किल से करना। निवृत्ति की खींच रखनी। अनेक भवों में धर्म के विचार न आएँ, अब मनुष्य भव मिला है और ज्ञानी का योग मिला है, तो धर्म कर लो। - आत्मा का परिचय करने में क्या कठिनाई है? लोकसंज्ञा में लोग जैसा कहते हैं, वैसा यह जीव करता है। ओघसंज्ञा में अविचार है।