________________
साधना पथ
प. पू. ब्र. श्री गोवर्धनदासजी का
संक्षिप्त जीवन चरित्र
जन्म
जन्म स्थळ जन्म नाम
माता पिता अभ्यास
आदर्श शिक्षक
संत मिलन
: जन्माष्टमी के दिन, वि.सं. १९४५। ___ बांधणी गाँव (पेटलाद के पास), गुजरात।
गोवर्धन। श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के दिन उनका जन्म हुआ था, अतः श्री कृष्ण के दूसरे नाम गोवर्धनधर के नाम से उन का नाम
गोवर्धन रखा गया था। : भक्तहृदयी जीताबाई। : श्री कृष्णभक्त श्री कालिदास द्वारकादास। : पेटलाद में से मेट्रिक;
बरोडा से ईन्टर आर्ट्स; ईस्वी सन् १९१४ में, विल्सन कॉलेज,
मुम्बई से बी.ए. पास किया। : ईस्वी सन् १९१५ में चरोतर एज्युकेशन सोसायटी में स्वयंसेवक
के रूपमें; ईस्वी सन् १९२०-२१ में डी.एन. हाईस्कूल, आणंद में हेडमास्टर रहें। वहीं आचार्य वनें। वि.सं. १९७७ की दीपावली की छुट्टियोंमें, अगास आश्रम स्थित प.पू.प्रभुश्रीजी (संतश्री लघुराजस्वामी) के प्रथम दर्शन हुए, धन्य हुए। कालीचौदश के दिन पू.प्रभुश्रीजी ने ब्र.जी. को स्मरण-मंत्र दिया और बोलें कि, 'ऐसा स्मरण-मंत्र आज तक हम ने किसी
को नहीं दिया।' : मात्र तेरह साल की उम्र में शादी-विवाह। लग्न के बाद कुछ साल
में ही पत्नी का वियोग। दूसरा लग्न नहीं किया। : वि.सं. १९८१ में, पू.प्रभुश्रीजी की आज्ञा लेकर, आश्रम में रहने
चले गएँ। पू.प्रभुश्रीजी को जीवन अर्पित किया। एक ही पुत्र की जवावदारी बड़े भाई को सौंप दी और खुद ने पू.प्रभुश्रीजी सं 'ब्रह्मचर्य दीक्षा' अंगीकार की। पू. प्रभुश्रीजी उन्हें 'ब्रह्मचारी' नाम से संबोधित करते थे, अतः वे उसी नाम से जाने गये - प्रचलित हुएँ। पूरे दिन पू.श्री प्रभुश्रीजी की सेवा में रहते और साथ में सत्संग-स्वाध्याय-भक्ति में लीन रहते।
गृहस्थ जीवन
ब्रह्मचर्य दीक्षा