________________
vi
साधना पथ समन्वय था। ऐसे बड़भागी साधक आत्मा के चरणो में कोटि-कोटि वंदन हो! उनके जैसे सद्गुण हमें भी संप्राप्त हो! उन के जैसी साधना-निष्ठा हमें भी संप्राप्त हो!
पू. ब्र.जीकी वचनशैली, लेखनशैली सरल-सहज और हृदयग्राहक थी। उनके साधकोपयोगी वचनों का यह संकलन संपादित करके हमें अति प्रसन्नता हो रही है, हमारा उसमें उत्तम स्वाध्याय हुआ है। श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास से गुजराती में प्रकाशित 'बोधामृत' भा.१, २ और ३ के आधार से इनका संकलन-संपादन हुआ है, अतः हम आश्रम के आभारी हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ गुजराती से हिन्दी में अनुवादित है। मूल सत्पुरुष के हृदय का एवं भाषा का भाव बना रहे, ऐसा प्रयत्न गुरुकृपा से किया है। फिर भी कोई त्रुटि रही हो तो हम क्षमाप्रार्थी हैं।
पू. ब्र.जी के वचन प्रत्येक मुमुक्ष-साधक को परम प्रेरणादायी हैं। दो वर्ष पूर्व एक ऐसा ही ग्रन्थ 'साधना मार्ग' (हिन्दी एवं गुजराती दोनों भाषाओं में) पू. प्रभुश्रीजी के 'उपदेशामृत' ग्रन्थमें से ही संपादित करके हमने प्रकाशित किया था, जो मुमुक्ष वर्ग में काफी उपयोगी एवं प्रचलित हुआ था। उसी श्रेणी में यह दूसरा ग्रन्थ है, जो मुमुक्ष-साधक को साधना में अति उपयोगी पाथेय देनेवाला है, अतः इसका नाम 'साधना पथ' रखा है। मूल पुस्तक गुजराती ‘बोधामृत' के पेज नंबर भी साथ में दिये गये हैं, जिस से उसका मूल स्त्रोत साधक को ज्ञात हो सके।
ज्ञानी का प्रत्युपकार कभी चुकाया नहीं जा सकता, तथापि यह लघुग्रंथ ज्ञानावतार श्रीमद् राजचंद्रजी के पावन करकमलों में समर्पित करके कृतार्थ होते हैं। सब का मंगल हो! सब का कल्याण हो!
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः लि. संतचरणरज, दासानुदास, आत्मार्थी
प्रकाश डी. शाह का आत्मभाव से वंदन