________________
viii
गुरुगम की प्राप्ति
स्वरूप प्राप्ति
साहित्य सर्जन
तीर्थ यात्रा
चित्रपट स्थापना
समाधि-मरण
:
:
:
:
:
:
साधना पथ
वि.सं. १९८२ में उन की योग्यता देखकर पू. प्रभुश्रीजी ने उन्हें समाधिशतक ग्रंथ पढ़ने के लिए दिया । वि.सं. १९८८ में उपरोक्त ग्रन्थ के गहन अध्ययन-मनन के बाद, पू. प्रभुश्रीजी से उन्हें 'गुरुगम' की प्राप्ति हुई ।
वि.सं. १९९२, चैत्र सुद पांचम के दिन प. पू. प्रभुश्रीजी ने उन्हें 'धर्म' सौंपा। 'धर्म' का उत्तरदायित्व दिया ।
वि.सं. १९९६, वैशाख वदी नवमी के दिन, गुरुकृपा से अभेद स्वरूप की प्राप्ति हुई, जो उनकी निष्काम प्रेम-भक्ति और अविरत ज्ञान-ध्यान-वैराग्य की साधना का फल था ।
प्रवेशिका, श्रीमद् राजचन्द्र जीवनकला, श्रीमद् लघुराजस्वामी जीवनचरित्र, प्रज्ञावबोध, समाधि - शतक विवेचन, आत्मसिद्धि विवेचन, मोक्षमाळा विवेचन, आठ दृष्टि सज्झाय विवेचन, आत्मसिद्धि का अंग्रेजी भाषांतर, कृपालुदेव के पदों का विवेचन एवं कृपालुदेव के पत्रों का विवेचन | कुछ ग्रन्थो की पद्यरचना भी उन्होंने की हैं। उन का सभी साहित्य श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास से प्रकाशित हुआ हैं।
आबू,
सम्मेतशिखरजी, शत्रुज्य, गिरनार, श्रवणबेलगूल, ईडर, चरोतर, मारवाड़ और दक्षिण के तीर्थों की यात्रा उन्होंने सकल * संघ के साथ की थी ।
उनके सान्निध्य में प.पू.प्रभुश्रीजी के रंगीन चित्रपट की स्थापना अगास में वि.सं. २००९ में हुई थी।
काविठा, धामण, आहोर, भादरण, सड़ोदरा ईत्यादि स्थलों में, श्रीमद् राजचन्द्र आश्रमों में चित्रपटों की स्थापना उनके पावन सान्निध्य में हुई थी।
वि.सं. २०१०, कारतक सुद सातम के दिन शाम को, परमकृपालुदेव श्रीमद् राजचन्द्रजी के चित्रपट के सन्मुख कायोत्सर्ग-ध्यान में, समाधिभाव से, उन्होंने अगास आश्रम के राजमंदिर में देहत्याग किया। पवित्र पुरुष ने, पवित्र भावों के साथ, पवित्र स्थल से, पवित्रता की पूर्णता के लिए प्रयाण किया ।
ऐसी भव्यातिभव्य आत्मा को हम सब का कोटि-कोटि प्रणाम! हमें भी ऐसा समाधि-मरण मिलें !
(प्रकाश शाह)