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सम्यक् चारित्र की पूर्णता
२२) नौ अनुदिश तथा पंच अनुत्तर विमानों में मात्र सम्यग्दृष्टि जन्मते हैं, यह कथन असत्य होगा । अथवा उन स्वर्गों का अभाव मानना होगा।
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२३) दिगम्बर अवस्था से ही मुक्ति - प्राप्ति का नियम नहीं रहेगा, सवस्त्र मुक्ति होती रहेगी।
गृहस्थ भी मुक्त होते रहेंगे।
२४) अन्तरंग एवं बहिरंग तप का अस्तित्व नहीं रहेगा। २५) अरहंत अवस्था का अभाव होने से उपसर्ग केवली आदि केवलियों के भेद भी नहीं रहेंगे।
२६) दिव्यध्वनि का अभाव मानने से गणधर की आवश्यकता नहीं रहेगी। सम्यग्दृष्टि एवं मुनिराज का भी उपदेश देने रूप कार्य नहीं रहेगा; क्योंकि वे तत्काल सिद्ध ही बनेंगे, उपदेश देने के लिए संसार में निवास बनेगा ही नहीं ।
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२७) असंख्यात गुणी निर्जरा का कथन भी नहीं बनेगा ।
२८) मोक्षमार्ग की साधक अवस्था में होनेवाले भिन्न साध्यसाधन और अभिन्न साध्य-साधन का अभाव का प्रसंग प्राप्त होगा; क्योंकि मोक्षमार्ग और मोक्ष एक ही समय में मान लिया गया। सम्यक्त्व प्राप्त होते ही मुक्ति मानने से मोक्षमार्ग के लिए समय ही नहीं रहेगा।
७४. प्रश्न - सम्यक्त्व होते ही तत्काल अर्थात् उसी समय सिद्ध अवस्था होती है; ऐसा मानने पर आपने अनेक उपर्युक्त आपत्तियाँ बताई । आप और भी आपत्तियाँ बता सकते हो क्या? हम समझना चाहते हैं । सम्यक्त्व होते ही तत्काल सिद्ध अवस्था होती है; ऐसा मानने पर और भी अनेक आपत्तियाँ आती हैं, वे इसप्रकार हैं
उत्तर