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मोक्षमार्ग की पूर्णता १४) प्रथमानुयोग में इस जीव ने सम्यक्त्व के साथ जन्म लिया, इसतरह हजारों स्थानों पर आये हुए सर्व कथन असत्य सिद्ध होंगे।
१५) सम्यग्दृष्टि, व्रती श्रावक एवं मुनिराज को भी अपनी-अपनी भूमिकानुसार दसवें गुणस्थान पर्यंत साम्परायिक आम्रवपूर्वक नया कर्मबंध होता है, यह शास्त्र-वचन असत्य सिद्ध होगा।
१६) उपशम एवं क्षपक श्रेणी का सब कथन निरर्थक ठहरेगा।
१७) साधक व सिद्ध अवस्था – इन दोनों अवस्थाओं का भिन्नभिन्न अस्तित्व नहीं रहेगा। इसकारण साधक अवस्था में मिश्र धारा (राग धारा व वीतराग धारा अथवा कर्मधारा व ज्ञानधारा) नहीं रहेगी।
साधक अवस्था का ही अभाव होगा अथवा साधकपना मात्र एक समय की अवस्था ही रहेगी।
१८) इस मिश्रधारा में एक ही काल में आस्रव-बंध तथा संवरनिर्जरा चारों तत्त्वों का अस्तित्व बना रहता है; सम्यक्त्व होते ही सिद्ध अवस्था होने से यह कार्य नहीं बन पायेगा।
१९) संवर व निर्जरा इन दोनों तत्त्वों का तथा मोक्ष का अस्तित्व ही नहीं रहेगा; सात तत्त्वों के स्थान पर जीव, अजीव, आस्रव एवं बंध - ये ४ ही तत्त्व रहेंगे।
२०) औपशमिक आदि सम्यक्त्व के काल की प्ररूपणा व्यर्थ सिद्ध होगी। प्रथम औपशमिक सम्यक्त्व होता है, क्षायोपशमिक सम्यक्त्वपूर्वक क्षायिक सम्यक्त्व उत्पन्न होता है, यह सब कथन व्यर्थ सिद्ध होगा।
२१) सम्यक्त्व प्राप्ति के बाद सम्यक्त्व छूटने पर वह जीव अधिक से अधिक किंचित् न्यून अर्द्धपुद्गल परावर्तन काल तक संसार में रुलता है; यह आगम-कथित नियम व्यर्थ सिद्ध होगा।