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________________ प्रथम खण्ड भूमिका . वीतरागी, सर्वज्ञ एवं हितोपदेशी जिनेन्द्र भगवान द्वारा प्रतिपादित जिनधर्म में विश्व व्यवस्था एवं वस्तु व्यवस्था का निरूपण - छह द्रव्य, पाँच अस्तिकाय, सात तत्त्व अथवा नौ पदार्थों के रूप में किया गया है। इनमें से छह द्रव्यों में जीव द्रव्य को प्रथम स्थान देकर इसकी प्रधानता सिद्ध की गयी है। इसीप्रकार पाँच अस्तिकायों में जीवास्तिकाय, सात तत्त्वों में जीव तत्त्व तथा नौ पदार्थों में जीव पदार्थ को प्रथम स्थान दिया गया है। वास्तव में जीव के वर्णन बिना जिनवाणी का निरूपण ही अपूर्ण है। प्रत्येक जीव द्रव्य में अनन्त गुण विद्यमान हैं, जिनमें श्रद्धा, ज्ञान व चारित्र प्रमुख गुण हैं; क्योंकि इन तीनों के विपरीत परिणमन के कारण ही जीव अनादि से चतुर्गतिरूप संसार में परिभ्रमण करता हुआ अनंत दुःख भोग रहा है तथा इनके ही सम्यक्परिणमन से जीव को अल्पकाल में ही मुक्ति की प्राप्ति भी निश्चित होती है। इन तीन गुणों में भी जीवको अन्य अनन्त द्रव्यों से भिन्न अर्थात् स्वतंत्र करनेवाला ज्ञान गुण ही जीवका असाधारण लक्षण होने से प्रधान गुण है। - ज्ञान के द्वारा यथार्थवस्तुस्वरूपसमझ में आने पर प्राथमिक अवस्था में श्रद्धा भी यथार्थ बनती है। इसी ज्ञान के निर्मल परिणमनरूप सम्यग्ज्ञान की स्थिरताको अभेद विवक्षासेध्यान कहते हैं और यही सम्यक्चारित्र है। । इसप्रकार श्रद्धा, ज्ञान एवं चारित्र - इन तीनों गुणों की निर्मल पर्यायें ही मोक्षमार्ग में प्रमुख हैं। इसीलिए आचार्य उमास्वामी ने इन तीनों (सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र) की एकता को ही मोक्षमार्ग अर्थात् मोक्षरूप १. मोक्षमार्गप्रकाशक, अध्याय ४, पृष्ठ ८० २. योगसार प्राभृत श्लोक-४७०
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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