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________________ मोक्षमार्ग की पूर्णता ६०. प्रश्न – चौदहवें गुणस्थान के अन्तिम समय पर्यन्त जीव को साधक अर्थात् संसारी मानना है या नहीं मानना ? उत्तर - चौदहवें गुणस्थानवर्ती को हम ही संसारी मान रहे हैं - ऐसा नहीं है । वे साधक होने से संसारी ही हैं; क्योंकि अभी वे सकल (शरीरसहित) परमात्मा हैं। शास्त्र में इनको शुद्ध व्यवहारी कहा है। अघाति कर्मों का उन्हें सद्भाव है। मनुष्यायु का उदय भी तो है, असिद्धत्व भाव भी है; इसलिए चौदहवें गुणस्थान के अन्तिम समय पर्यन्त अरहन्त भगवान संसारी ही हैं। अरहन्त को जीवनमुक्त, इषत्संसारी या नोसंसारी भी कहते हैं । 78 - ६१. प्रश्न – फिर संसारावस्था का नाश और सिद्धावस्था की प्राप्ति कब हुई ? उत्तर - संसारावस्था का नाश और सिद्धावस्था का उत्पाद दोनों का समय एक ही है। पहले संसार का नाश होता है और कुछ काल व्यतीत होने पर सिद्धावस्था की प्राप्ति होती है, ऐसा समय-भेद नहीं है। पहले अन्धकार निकल जाता है, तदनन्तर मन्द मन्द गति से प्रकाश का प्रवेश होता है - ऐसा नहीं है। पूर्व पर्याय का व्यय व नवीन पर्याय का उत्पाद एक ही काल में होता है, उनमें समय भेद नहीं होता है । ' ६२. प्रश्न - दसवें गुणस्थान के अन्त में चारित्रमोहनीय का अभाव होकर बारहवें गुणस्थान के प्रथम समय में ही क्षायिक यथाख्यातचारित्र होता है; तथापि आप सम्यक्चारित्र की पूर्णता सिद्धावस्था के प्रथम समय में क्यों कहते हो? उत्तर - सम्यक्चारित्र की पूर्णता के लिए मात्र चारित्रमोहनीय कर्म का ही अभाव अपेक्षित नहीं है; अपितु पूर्ण वीतरागता के साथ योग एवं चार अघाति कर्मों का अभाव भी अपेक्षित होता है, इसीलिए भाव तथा द्रव्य चारित्र की पूर्णता सिद्धावस्था के प्रथम समय में ही होती है। १. प्रवचनसार गाथा १०२ की टीका
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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