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________________ 11 सम्यक्चारित्र की पूर्णता __ मोक्षमार्ग का व्यय और मोक्ष का उत्पाद - ये दोनों एक समय में होते हैं। मोक्षमार्ग और मोक्ष दोनों एकसाथ/एकसमय में नहीं होते। ५९. प्रश्न - हमें शंका होती है कि मोक्षमार्ग का व्यय होने पर मोक्ष में सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय का अस्तित्व रहेगा या नहीं, सिद्ध भगवान सम्यग्दर्शनादि से रहित होंगे, क्या हमें ऐसा स्वीकार करना उचित है? उत्तर - नहीं, मोक्षमार्ग का व्यय होने पर भी मोक्ष में सम्यग्दर्शनादि का व्यय/अभाव नहीं होता। मोक्ष में सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय विद्यमान रहेंगे। ____ अंतर मात्र इतना रहेगा कि मोक्षमार्ग में सम्यग्दर्शनादि साधनरूप से थे, वे ही मोक्ष में साध्यरूपसे रहेंगे। पहले उपायरूप से थे अब मोक्ष में वे ही उपेयरूप से विद्यमान रहेंगे। सम्यग्दर्शनादि का मोक्ष में अभाव नहीं होता। इस विषय को मोक्षमार्ग प्रकाशक में अति स्पष्टरूप से पृष्ठ ३२२ पर दिया है, उसे हम आगे दे रहे हैं - फिर प्रश्न है कि - सम्यग्दर्शन को तो मोक्षमार्ग कहा था, मोक्ष में इसका सद्भाव कैसे कहते हैं? उत्तर- कोई कारण ऐसा भी होता है जो कार्य सिद्ध होने पर भी नष्ट नहीं होता। जैसे-किसी वृक्ष के किसी एक शाखा से अनेक शाखायुक्त अवस्था हुई, उसके होने पर वह एक शाखा नष्ट नहीं होती; उसी प्रकार किसी आत्मा के सम्यक्त्वगुण से अनेक गुणयुक्त मुक्त अवस्था हुई, उसके होने पर सम्यक्त्वगुण नष्ट नहीं होता। इस प्रकार केवली-सिद्ध भगवान के भी तत्त्वार्थ श्रद्धान लक्षण सम्यक्त्व ही पाया जाता है। • सम्यग्दर्शन की पूर्णता चौथे गुणस्थान में, सम्यग्ज्ञान की पूर्णता तेरहवें गुणस्थान में सम्यक्चारित्रगुण की भाव शुद्धता बारहवें गुणस्थान में और द्रव्य चारित्र की पूर्णता सिद्धावस्था के प्रथम समय में होने से अब साधक सिद्ध हो गये हैं। .. १. प्रवचनसार गाथा-१०२ की टीका देखें।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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