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________________ 74 मोक्षमार्ग की पूर्णता उपाय है; उसीप्रकार परमात्म-पद प्राप्ति का अथवा तत्त्वांतगति अर्थात् मुक्ति में पहुंचने का उपाय विभक्त चेतन अर्थात् शुद्धात्मा के ध्यान को ही जिनेन्द्र भगवंतों ने बतलाया है। नाध्यात्म-चिन्तनादन्यः सदुपायस्तु विद्यते। दुरापः स परं जीवैर्मोहव्यालकदर्थितैः॥३४२॥ सरलार्थ - अध्यात्म-चिंतन अर्थात् निज शुद्धात्मा के ध्यान से भिन्न दूसरा कोई परमात्मस्वरूप साध्य का साधन नहीं है। विशेष बात यह है कि जो जीव मोहरूपी सर्प से डसे हुए हैं अथवा मोहरूपी हाथी से पीड़ित हैं, उनके लिये शुद्धात्मा का ध्यानरूपी सदुपाय अर्थात् उत्तम उपाय अत्यंत दुर्लभ है। ५६. प्रश्न - धर्म के लिए निज शुद्धात्मा का ही ध्यान करना चाहिए, यह कथन मात्र द्रव्यानुयोग का है, अन्य अनुयोग की अपेक्षा जो उपाय हैं, उनका कथन आप क्यों नहीं करते ? ___ उत्तर - चरणानुयोग में बुद्धिपूर्वक परद्रव्य के त्याग की बात कही है, व्रत-उपवास का कथन किया है। करणानुयोग में कर्म के अभाव करने की बात आती है - ये सब उपाय पूर्वचर-सहचर्य हेतु होने से उपचरित व्यवहार का कथन हैं, वास्तविक साधन नहीं हैं। • देशविरत गुणस्थान से छठवें-सातवें गुणस्थान में वीतरागता और बढ जाती है; क्योंकि ये दोनों गुणस्थान महाव्रती मुनिराज के हैं। मुनिराज तो आत्मध्यान का तीव्र पुरुषार्थ करते ही हैं, इसकारण वीतरागता विशेष वृद्धिंगत होती है। ५७. प्रश्न - आपने यहाँ पाँचवें गुणस्थान से छठवें गुणस्थान में अधिक चारित्र होता है - ऐसा न कहकर छठवें-सातवें इसप्रकार दो गुणस्थानों का कथन एकसाथ ही क्यों किया ? उत्तर - देशविरत गुणस्थान में दो कषाय चौकड़ी के अभावपूर्वक
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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