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________________ मोक्षमार्ग की पूर्णता • सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति के बाद ज्ञान की पूर्णता अर्थात केवलज्ञान की उत्पत्ति का कुछ नियम नहीं हैं। केवलज्ञानरूप ज्ञान की पूर्णता - कुछ काल व्यतीत होने पर अथवा कुछ भव व्यतीत होने पर भी हो सकती है। इसका स्पष्ट भाव यह है कि ज्ञान का सम्यक्पना और ज्ञान गुण की पूर्ण पर्याय प्रगट होना- इन दोनों में नियम से कालभेद है । आगे ज्ञान की पूर्णता एवं विकास के संबंध में ही प्रश्नोत्तररूप से कुछ क्रम से कथन करते हैं। 56 ३५. प्रश्न - तेरहवें गुणस्थान में सम्यग्ज्ञान की केवलज्ञानरूप (पूर्ण पर्याय) पूर्णता होने के बाद आगे चौदहवें गुणस्थान में उसमें क्या कुछ विशेष विकास होता है ? उत्तर - नहीं, केवलज्ञानरूप ज्ञान की पूर्णता चौदहवें गुणस्थान में भी रहती है और सिद्ध अवस्था में भी अनन्त काल पर्यंत केवलज्ञान ही वर्तता है। ज्ञान की पूर्णता होने के बाद उसमें विकास के लिए कोई अवकाश ही नहीं है और पूर्ण ज्ञान होने के बाद उसमें फिर अपूर्ण ज्ञानरूप से परिणमन होने का कुछ कारण भी नहीं है। ३६. प्रश्न : तेरहवें गुणस्थान में ज्ञान का विकास केवलज्ञानरूप से पूर्ण होता है; ऐसा आपने कहा- हमें शंका यह होती है कि अनंत काल के भविष्य में केवलज्ञान में भी विकास होता ही रहना चाहिए । केवलज्ञानरूप पूर्ण विकास के बाद ज्ञान का विकास रुकता क्यों हैं ? उत्तर : केवलज्ञानरूप विकास होने के बाद फिर ज्ञान के विकास के लिए अवकाश ही नहीं है; क्योंकि केवलज्ञान से सभी द्रव्यों, सभी ( भूत-भावी एवं वर्तमान) पर्यायों को एक साथ ( युगपत्) जानने के बाद पूर्ण विश्व में अज्ञात कोई वस्तु ही नहीं रहती तो ज्ञान में विकास क्यों और कैसे होगा ? इसीलिए केवलज्ञान होने के बाद अनंत काल
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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